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शनिवार, 17 मई 2014

''जब घोर निराशा में डूबे हो ''


जब घोर निराशा में डूबे हो
गम का तम हो चहुँ ओर ,
ये लगे कि हम कितने बेबस ,
निरुत्साही और हैं कमजोर !
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उस वक्त ह्रदय में लाना ये
कि फिर प्रयास करेंगें अब
गिर -गिर के उठेंगें बार -बार
जीतेंगें हम , जाएगी हार हार !
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काँटों के पथ  पर नग्न पग
चलने से  हम न  हिचकिचाएं  ,
ना ही दुःखों की  धूप  से बचकर
उदासी के साये में जाएँ !
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संघर्षों की आग में तपकर
इस जीवन को कनक बनायें ,
जगमग -जगमग  कर्म  हो ऐसे
निज  चरणों  में जगत  झुकाएं  !

शिखा  कौशिक 'नूतन'  




2 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

काँटों के पथ पर नग्न पग
चलने से हम न हिचकिचाएं ,
ना ही दुःखों की धूप से बचकर
उदासी के साये में जाएँ !
bahut sarthak v shanti dene vali panktiyan .very nice .

बेनामी ने कहा…

सकारात्मक उर्जा से परिपूर्ण प्रेरणादायक प्रस्तुति..