'मदर्स डे'' का सच्चा उपहार |
घर घर बर्तन माँजकर विधवा सुदेश अपनी एकलौती संतान लक्ष्मी का किसी प्रकार पालन पोषण कर रही थी .लक्ष्मी पंद्रह साल की हो चली थी और सरकारी स्कूल में कक्षा दस की छात्रा थी .आज लक्ष्मी का मन बहुत उदास था .उसकी कक्षा की कई सहपाठिनों ने उसे बताया था कि उन्होंने अपनी माँ के लिए आज मदर्स डे पर सुन्दर उपहार ख़रीदे हैं पर लक्ष्मी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो माँ के लिए कोई उपहार लाती .स्कूल से आकर लक्ष्मी ने देखा माँ काम पर नहीं गई है और कमरे में एक खाट पर बेसुध लेटी हुई है .लक्ष्मी ने माँ के माथे पर हथेली रख कर देखा तो वो तेज ज्वर से तप रही थी .लक्ष्मी दौड़कर डॉक्टर साहब को बुला लाई और उनके द्वारा बताई गई दवाई लाकर माँ को दे दी .माँ जहाँ जहाँ काम करती है आज लक्ष्मी स्वयं वहां काम करने चली गयी .लौटकर देखा तो माँ की हालत में काफी सुधार हो चुका था .लक्ष्मी ने माँ का आलिंगन करते हुए कहा -''माँ आज मदर्स डे है पर मैं आपके लिए कोई उपहार नहीं ला पाई ...मुझे माफ़ कर दो !''सुदेश ने लक्ष्मी का माथा चूमते हुए कहा -''रानी बिटिया कोई माँ उपहार की अभिलाषा में संतान का पालन-पोषण नहीं करती ...तुम्हारे मन में मेरे प्रति जो स्नेह है वो तुमने मेरी सेवा कर प्रकट कर दिया है .आज तुमने मुझे ये अहसास करा दिया है कि मैं एक सफल माँ हूँ .मैंने जो स्नेह के बीज रोपे वे आज पौध बन कर तुम्हारे ह्रदय में पनप रहे हैं .तुमने ''मदर्स डे'' का सच्चा उपहार दिया है !!''
शिखा कौशिक 'नूतन '
3 टिप्पणियां:
होती है न माँ तो ऐसी… पर उपहार दिये बिना बच्चे भी कैसे मान जांए? :)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (11-05-2014) को ''ये प्यारा सा रिश्ता'' (चर्चा मंच 1609) में अद्यतन लिंक पर भी है!
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मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
-सुंदर रचना...
आपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 12/05/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...
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