सदियों से बेटों की चाहत में कोख में ही मिटती रही है बेटियाँ
धन-दौलत के लालच में दहेज की वेदियो पर जलती रही है बेटियाँ
हवस की आग में अंधे गुनाह करते है दरिंदे
और जमाने भर दंड सहती रही है बेटियाँ
रखती है वो दो कुलों का मान भी सम्मान भी
और मान-सम्मान के नाम पर क़त्ल भी होती रही है बेटियाँ
लिख तो दी तूने कहानी उसकी अपनी जुबानी
पर भुला दिया इस कहानी में एक किस्सा उसका अपना भी है
खुदा ने बख्शी है जो ये ज़मीं ये आसमां उसमे एक हिस्सा उसका भी
है ख्वाब कुछ आँखों में उसके भी दिले नादाँ में कुछ अरमां भी है
पर तोड़ दिए तूने सपने उसके अरमां सब उसके क़त्ल कर डाले
की उड़ने की जो चाहत उसने पंख तूने उसके कतर डाले
मिटा दिया उसकी ही कहानी से किस्सा उसका
छीन लिया उसके हिस्से की वो ज़मीं वो आसमां उसका
और डाल दी पैरों में उसके बंदिशों की कितनी ही बेडियाँ
जिन बेडियो में जकड़ी मुद्दतों से घुटती है बेटियाँ
है सदियों से अनुत्तरित वो प्रश्न
जो आज भी चुभता है बनकर एक दंश
है गर बेटो से चलता तुम्हारा वंश
तो क्या बेटियाँ है किसी गैर का अंश
जन्म जब माँ एक बच्चे को देती है
वो बेटा हो या बेटी पीड़ा उसको उतनी ही होती है
सदियाँ बदल गयी अब तुम भी बदलो अपनी सोच
नहीं बेटे-बेटियों में कोई अन्तर
ना ही बेटियाँ है कोई बोझ
दो बेटी को भी उसका अधिकार
दो उसको भी अच्छी शिक्षा और संस्कार
बेटो से कम नहीं होती है बेटियाँ
गर बेटा है कुल का दीपक
तो कुल की ज्योति होती है बेटियाँ
धन-दौलत के लालच में दहेज की वेदियो पर जलती रही है बेटियाँ
हवस की आग में अंधे गुनाह करते है दरिंदे
और जमाने भर दंड सहती रही है बेटियाँ
रखती है वो दो कुलों का मान भी सम्मान भी
और मान-सम्मान के नाम पर क़त्ल भी होती रही है बेटियाँ
लिख तो दी तूने कहानी उसकी अपनी जुबानी
पर भुला दिया इस कहानी में एक किस्सा उसका अपना भी है
खुदा ने बख्शी है जो ये ज़मीं ये आसमां उसमे एक हिस्सा उसका भी
है ख्वाब कुछ आँखों में उसके भी दिले नादाँ में कुछ अरमां भी है
पर तोड़ दिए तूने सपने उसके अरमां सब उसके क़त्ल कर डाले
की उड़ने की जो चाहत उसने पंख तूने उसके कतर डाले
मिटा दिया उसकी ही कहानी से किस्सा उसका
छीन लिया उसके हिस्से की वो ज़मीं वो आसमां उसका
और डाल दी पैरों में उसके बंदिशों की कितनी ही बेडियाँ
जिन बेडियो में जकड़ी मुद्दतों से घुटती है बेटियाँ
है सदियों से अनुत्तरित वो प्रश्न
जो आज भी चुभता है बनकर एक दंश
है गर बेटो से चलता तुम्हारा वंश
तो क्या बेटियाँ है किसी गैर का अंश
जन्म जब माँ एक बच्चे को देती है
वो बेटा हो या बेटी पीड़ा उसको उतनी ही होती है
सदियाँ बदल गयी अब तुम भी बदलो अपनी सोच
नहीं बेटे-बेटियों में कोई अन्तर
ना ही बेटियाँ है कोई बोझ
दो बेटी को भी उसका अधिकार
दो उसको भी अच्छी शिक्षा और संस्कार
बेटो से कम नहीं होती है बेटियाँ
गर बेटा है कुल का दीपक
तो कुल की ज्योति होती है बेटियाँ
शिल्पा भारतीय "अभिव्यक्ति"
(२३/०४/२०१४)
9 टिप्पणियां:
sarthak prastuti hetu aabhar
हर बेटी को शिक्षा का अधिकार है..समान के साथ जीने का अधिकार है, सार्थक पोस्ट !
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - रे मुसाफ़िर चलता ही जा पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
Bahut khoob likha aapne..waah
है गर बेटो से चलता है तुम्हारा वंश
तो क्या बेटियाँ है किसी गैर का अंश
खूबसूरत प्रस्तुति
खूबसूरत प्रस्तुति
खूबसूरत प्रस्तुति
सिर्फ बेटों से नही किसी और की बेटयों से चलता है तुम्हारा वंश। सुंदर प्रस्तुति।
बेहद सुन्दर सार्थक प्रस्तुति ...ये प्रश्न तो हमे पूछने ही हैं ,इनका हल भी खुद ही ढूंढना पड़ेगा,एक अंतराल के बाद ब्लॉग पर आने का खेद है ,एक पांडुलिपि तैयार करने में व्यस्त थी इसलिए ब्लॉग पर आना कम हो गया था
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