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शनिवार, 28 सितंबर 2013

बड़प्पन -लघु कथा




रजत ऑफिस से लौटकर आया तो उसके नन्हे नन्हे दोनों बेटे हनी-सनी दौड़कर उससे आकर लिपट गए .रजत ने पैंट की जेब से निकालकर एक चॉकलेट बड़े बेटे हनी की हथेली पर रख दी .ये देखकर छोटा बेटा सनी उदास हो गया . हनी ने चॉकलेट पकड़ते हुए उत्साह के साथ पूछा -''..और सनी की चॉकलेट कहाँ है पापा ?'' रजत ने पैंट की दूसरी जेब में हाथ डाला और एक चॉकलेट निकालकर सनी को पकड़ा दी .सनी का चेहरा भी खिल उठा .हनी-सनी अपनी चॉकलेट लेकर इधर-उधर धूम मचाने लगे तभी उनकी मम्मी वसुधा गिलास में पानी लेकर आ गयी .रजत वसुधा से पानी का गिलास पकड़ते हुए बोला -'' वसुधा देखो न अभी केवल चार साल का है हनी और बड़े भईया होने का बड़प्पन आ गया है .मैंने केवल उसे चॉकलेट पकडाई तो सनी को उदास देखकर पूछता है सनी की चॉकलेट कहाँ है पापा ? '' वसुधा मुस्कुराते हुए बोली -'' क्यों न हो बड़प्पन ..अपने ताऊ जी पर गया है .देखा नहीं था पिछली बार जब गाँव में सब इकठ्ठा हुए थे तब माँ जी ने जब उन्हें कुर्ते-पायजामे का कपडा दिया तो तुरंत बोले थे '' छोटे का कहाँ है अम्मा ? ....बड़ों में बड़प्पन होता ही है और जिसमे न हो वो कैसा बड़ा !'' वसुधा की ये बात सुन रजत भी मुस्कुरा दिया .



शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 21 सितंबर 2013

सिले लबों के टाँके सब टूटने लगे

सिले लबों के टाँके सब टूटने लगे ,




मर्द के गुरूरी कोठे सब टूटने लगे !



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ज़ुल्म के जिन पिजरों में कैदी थे ख्वाब ,



जंग खाकर पिंजरे वे सब टूटने लगे !



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सहकर सितम खिलाई मैंने वफ़ा की रोटी ,



बर्दाश्त के अब चूल्हे सब टूटने लगे !



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कैदखाना था मेरा चौखट व् दीवारें ,



बढ़ते मेरे वजूद से सब टूटने लगे !



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’नूतन’ यकीन कर बदली मेरी सूरत ,



मर्दाना डर के आईने सब टूटने लगे !



शिखा कौशिक ‘नूतन’



बुधवार, 18 सितंबर 2013

काश मुंह पर लात इसके मारती इंसानियत !

हर तरफ चीखें ही चीखें चीखती इंसानियत ,


इन्सान को हैवान बनते देखती इंसानियत !

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ज़ख्म खाकर ज़ख्म देने का चढ़ा जूनून ,

हो गयी मजबूर कैसे रोकती इंसानियत ?

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दिल सभी के जल रहे बदले की आग में ,

देख क़त्ल-ओ-आम छाती पीटती इंसानियत !

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दुधमुहे बच्चों से माँ-बाप का साया छिना ,

देख मासूमों के आंसू टूटती इंसानियत !

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हँस रही हैवानियत खुनी खेल खेलकर ,

काश मुंह पर लात इसके मारती इंसानियत !



शिखा कौशिक 'नूतन'









































यार क्या आइटम हैं

"सारी उम्र बीत गयी रे छोर्री!! "
"नु ही साड़ी पहनते हुए . इब इस उम्र में क्या सूट पहनूगी ! यह सुथ्हन वाले सूट ब्याह के बाद कोणी पहरे जावे म्हारी बिरादरी में!!
 ."ब्याह के बाद छोरी की चाहे जित्ती भी उम्र हॉवे उसे साडी ही पहननी हॉवे . और सर पर पल्लू उतरने न पावे तो तू चाहवे के इब मैं सलवार सूट पहर लू ..न मेरे से कोनि हॉवे येह, जा मैं कमरे से बाहर ही ना निक्लुगी इब "
 कहते कहते मिथलेश ने अपनी साड़ी को और कसकर लपेट लिया अपने बदन पर 
यह आजकल की बहुए  न हमने इनके एतराज किया इनका दूसरी जात के होने पर न हमने इनको टोका कि यह न पहनो वोह न पहनो जो यह शहर आकर बेशरम सी घूमती रवे बिना पल्लू के कही बांह नंगी तो कही टांग .. तुमको कह दिया कि जो मर्ज़ी करो 
पर अब हमपर भी ज़बरदस्ती कि अम्मा सीधे पल्ले की साड़ी न पहनो अम्मा सर पर पल्लू न रखा करो हमारे दोस्तों के सामने . अब यह सलवार सूट की जिद !! मुझे अब नही रहना इनके घर एक तो पहले ही महरी और मिसराइन का काम सौप रखा हैं उस पर अब नयी जिद !१ इस से भली तो अपने गांव में थी .... बुदबुदाती  हुयी मिथलेश  घंटो तक बिस्तर पर पढ़ी रही उदास सी .
                                                                          जब   पानी पीने रसोई की तरफ बढ़ी तो बहु की सहेलियों की हंसी सुनाई दी " यार क्या आइटम हैं तेरी सास कसम से ..""


"..................नीलिमा शर्मा ...........


चित्र गूगल से 

रविवार, 15 सितंबर 2013

पहनावा-लघु कथा

तन्वी को सब्जी मंडी जाना था .तन्वी ने जूट का बैग लिया और सड़क के किनारे-किनारे सब्जी मंडी की ओर चल दी. तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी -''कहाँ जायेंगी माता जी ?'' तन्वी ने 'नहीं भैय्या '' कहा तो ऑटो वाला आगे निकल गया . अगले दिन तन्वी अपनी बिटिया मानवी को स्कूल बस में बैठाकर घर लौट रही थी तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी -''बहन जी मोहपुरी ही जाना है क्या ?'' तन्वी ने मना कर दिया .पास से गुजरते उस ऑटोवाले को देखकर तन्वी पहचान गयी कि ये कल वाला ही ऑटोवाला था . आज तन्वी को अपनी सहेली के घर जाना था .वह सड़क किनारे खड़ी होकर ऑटो का इंतजार करने लगी .तभी एक ऑटो आकर रुकी -'' कहाँ चलेंगी मैडम ?'' तन्वी ने देखा ये वो ही ऑटोवाला है जो कई बार इधर से गुजरते हुए उससे पूछता रहता है चलने के लिए .तन्वी बोली -'' मधुबन कॉलोनी हैं ना सिविल लाइन्स में वाही जाना है .चलोगे ?'' ऑटोवाला मुस्कुराते हुए बोला-'' चलेंगें क्यों नहीं मैडम ...आ जाइये .'' ऑटो वाले के ये कहते ही तन्वी ऑटो में बैठ गयी . ऑटो स्टार्ट होते ही तन्वी अपनी जिज्ञासावश उस ऑटोवाले से पूछ ही बैठी -'' भैय्या एक बात बतायेंगें ? दो-तीन दिन पहले आप मुझे माता जी कहकर चलने के लिए पूछ रहे थे ,कल बहन जी और आज मैडम ! ऐसा क्यूँ ?'' ऑटोवाला हँसते हुए बोला -'' सच बताऊँ ....आप जो भी समझे पर किसी का भी पहनावा हमारी सोच पर असर डालता है ..आप दो-तीन दिन पहले साड़ी में थी तो एकाएक मन में भाव जगे आदर के क्योंकि मेरी माँ हमेशा साड़ी ही पहनती है इसीलिए मुंह से खुद ही ''माता जी '' निकल गया .कल आप सलवार -कुर्ते में थी जो मेरी बहन भी पहनती है इसीलिए आपके प्रति स्नेह का भाव जगा और मैंने ''बहन जी '' कहकर आपको आवाज़ दे दी .आज आप जींस-टॉप में हैं जो कम से कम माँ-बहन का भाव नहीं जागते इसीलिए मैंने आपको 'मैडम' कहकर बुलाया .आप मेरी बात समझ रही हैं ना ? ...लीजिये ये आ गया मधुबन !'' ऑटो रुकते ही तन्वी ऑटो से उतरी और किराया चुकाते हुए बोली -'' हाँ !भैय्या आपकी बात समझ में आ गयी पर आदमियों के पहनावे पर भी कोई भाव जगता है या नहीं ?'' ऑटोवाला मस्ती में बोला -'' हाँ हाँ क्यों नहीं !! धोती-कुर्ता पहनने वाला '' ताऊ '' और पेंट -कमीज़ वाला '' बाऊ जी '' . ऑटो वाले की इस बात पर तन्वी ठहाका लगाकर हंस पड़ी और अपनी सहेली के घर की ओर बढ़ ली .



शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 7 सितंबर 2013

ये हिन्दू मुस्लिम मत कर ढीला भेजा कसवा ले !

ये हिन्दू मुस्लिम मत  कर  ढीला   भेजा  कसवा  ले


[मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक हिंसा, 4 मरे

मुजफ्फरनगर के कवाल गांव में दो समुदायों के बीच हुई गोलीबारी में चार लोगों की मौत हो गई। पुलिस ने इलाके के तीन थानों में कर्फ्यू लगा दिया है।]






अरे दिल तेरा  मैला  है जरा  अच्छे  से  मंजवा  ले ,
ये हिन्दू मुस्लिम मत  कर  ढीला   भेजा  कसवा  ले ,
हम  तो हिंदुस्तानी  हैं  है अपना  धर्म  तिरंगा  ,
आ  गले  ईद  पर  मिल  ले दीवाली  साथ  मना  ले !
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हमको मंदिर प्यारे हैं हमको मस्जिद है प्यारी ,
अमन मुल्क में रखने की अपनी जिम्मेदारी  ,
श्री राम भक्त है हम ही हम ही अल्लाह के बन्दे ,
अलगाव आग की ठंडी कर देंगें हर चिंगारी ,
यूँ ज़हर न घोलो फिजां में अरे मत हमसे पंगा ले !
ये हिन्दू मुस्लिम मत  कर  ढीला   भेजा  कसवा  ले
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रमजान  हो  या  हो  सावन  दोनों हैं पाक महीने ,
सलमा हो  या  हो  सीता दोनों हैं अपनी बहाने  ,
एक राम राम करता है और दूजा करे सलाम ,
गंगा-जमुना तहजीब है इसके क्या हैं कहने !
है एक खून हम सबका आ आज चैक करवा ले !
ये हिन्दू मुस्लिम मत  कर  ढीला   भेजा  कसवा  ले
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मज़हब की दीवारों में चिनवाओ मत तुम खुद को ,
ये हिंदुस्तान सभी का समझाए आओ सभी को ,
नादाँ कट्टर बनकर न घर अपना आप जलाओ ,
दुश्मन हैं बहुत हमारे मत देना मौका इनको !
क्या कर लेगा पडोसी जब एक हो सब घरवाले !
ये हिन्दू मुस्लिम मत  कर  ढीला   भेजा  कसवा  ले !

शिखा कौशिक 'नूतन '

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

शामली के हिन्दू-मुस्लिम मिलकर अमन बनायें रखें !


क्या जरूरत है हमें तोप की - तलवार की 
जंग लडनी है हमें तो नफरतों पर प्यार की .

इसमें हर इन्सान के दिल से मिटाने है गिले ;
बंद हो अब साजिशें अपनों के क़त्ल-ओ-आम की .
क्या जरूरत ....

है बहुत मुमकिन की हम हार जाएँ जंग में ;
ये घडी है सब्र की और इम्तिहान की .
क्या जरूरत ....

कल हमें काटा था उसने ;आज हम काटें उसे 
छोड़ दो ये जिद जरा कीमत तो समझो जान की .
क्या जरूरत .....
                                     शिखा कौशिक 'नूतन '