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गुरुवार, 29 अगस्त 2013

शांत रस रौद्र में प्रचंड हो बदल रहा !

Hindu_temple : Indian temple architecture at sunset
शांत रस रौद्र में प्रचंड हो बदल रहा !

आस्था -अनास्था  का द्वन्द उर में चल रहा ,
आस के ही गर्भ में निराशा भ्रूण पल रहा ,
भक्ति -भाव भक्त की चिता के संग है जल रहा ,
शांत रस रौद्र में प्रचंड हो बदल रहा !
*******************************
मृत्यु ने तांडव किया लील लिए भक्त ,
हाँ सृजन से दोगुना विध्वंस है सशक्त ,
मंदिरों में बिखर गया भक्त का ही रक्त ,
नहीं बढ़ा प्रभु तुम्हारा रक्षा हेतु हस्त ,
नास्तिक-आस्तिक की दुर्दशा पर हंस रहा !
शांत रस रौद्र में प्रचंड हो बदल रहा !
********************
है कोई सत्ता प्रभु की या ये केवल भ्रम ?

ज्वार उठ रहा पुन: क्षुब्ध अंतर्मन ,
मुंह छिपाकर घूमती भक्ति को आती शर्म ,
है यही परिणाम तो कोई क्यूँ करे सद्कर्म ?
देर क्या ? सबेर क्या ?अंधेर हो रहा !
शांत रस रौद्र में प्रचंड हो बदल रहा !
****************************
सहस्त्र नाम जप ,व्रत ,कीर्तन ,भजन ,
अखंड पाठ ,आरती  ,नित्य स्मरण ,
क्यूँ किये किसके लिए ?क्या सब हैं निरर्थक ?
साकार -निराकार की क्या धारणा है व्यर्थ ?
क्षत-विक्षत हैं भक्त शव क्या 'वो' है सो रहा ?
शांत रस रौद्र में प्रचंड हो बदल रहा !

शिखा कौशिक 'नूतन '


मंगलवार, 27 अगस्त 2013

बेटी को माना बोझ तो फिर जन्म क्यूं दिया ,





 

न कुछ कहने की इज़ाज़त ,
न कुछ बनने की इज़ाज़त ,
न साँस लेने की इज़ाज़त ,
न आगे बढ़ने की इज़ाज़त .
      न आपसे दो बात मन की बढ़के कह सकूं ,
      न माफिक अपने फैसला खुद कोई ले सकूं ,
      जो आपको लगे सही बस वो ही मैं करूँ ,
      न उसको किसी हाल में मैं नहीं कह सकूं .

अपनी ही बात को रखा सबसे सदा ऊपर ,
हालत का मेरी दोष मढ़ा मेरे ही सिर पर ,
माना न कहा मेरा ,औरों से दबाया ,
फिर उनकी बात रखकर मारी मुझे ठोकर .
        बनते हैं वक्त के हमकदम ज़माने के लिए ,
        दूसरों की असलियत पे होंठ सी लिए ,
        देना था जहाँ साथ मेरा भविष्य के लिए ,
        पैरों में मेरे बेड़ियाँ डाल खड़े हो लिए .

बेटी को माना बोझ तो फिर जन्म क्यूं दिया ,
बेटी का भविष्य यहाँ चौपट क्यूं कर दिया ,
न देना था उसको अगर सुनहरा भविष्य ,
पैदा हुए ही गला क्यूं दबा नहीं दिया .
        बेटी तो पौध है खुले आँगन में ही चले ,
        सांसे उसे बढ़ने को उस हवा में ही मिलें ,
        रखोगे बंद कमरे में दुनिया से छिपाकर ,
        घुट जाएगी वैसे ही जैसे पौध न खिले .

    शालिनी कौशिक
     [WOMAN ABOUT MAN]



शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

मानव तुम ना हुए सभ्य




आज भी कई
होते चीरहरण
कहाँ हो कृष्ण
                ***
रही चीखती
क्यों नहीं कोई आया
उसे बचाने
                ***
निर्ममता से
तार-तार इज्ज़त
करें वहशी
                ***
हुआ वहशी
खो दी इंसानियत
क्यों आदमी ने
                ***
तमाम भय
असुरक्षित हम
कैसा विकास
                ***
कैसी ये व्यथा
क्यों रहे जानवर
पढ़-लिख के
                ***
वामा होने की
कितनी ही दामिनी
भोगतीं सज़ा
                ***
बेबस नारी
अजीब-सा माहौल
कैसा मखौल
                ***
ओ रे मानव
कई युग बदले
हुआ ना सभ्य
                ***


Dr. Sarika Mukesh
http://hindihaiku.blogspot.com

गुरुवार, 15 अगस्त 2013

वैराग्य या पलायन -कहानी

वैराग्य या पलायन -कहानी 











भव्य  क्षुल्लिका   दीक्षा   समारोह   का निमंत्रण पत्र मेरे हाथ में था और मेरा ह्रदय रो रहा था .यूँ ही नहीं पुख्ता वजह थी मेरे पास .मैं जानती थी जो दीक्षा लेने जा रही थी वो यूँ ही वैराग्य के पथ पर अग्रसर नहीं हो गयी .जिस संसार को आज वो विलासिता का रागमहल बताकर संयम पथ पर अग्रसर हो रही थी उसे आठ वर्ष पूर्व पा लेने ले लिए कितनी लालायित थी .अपने जीवन में इन्द्रधनुष के सातों रंग भर लेना चाहती थी .कितना उत्साह था उसमे जीवन को लेकर .हर परीक्षा में सबसे ज्यादा अंक प्राप्त कर लेने की प्रतिस्पर्धा और सांवले रंग रूप की होकर भी चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक ..सुन्दर दिखने की ललक भी थी उसमे छिपकर आईने में कई बार निहारती थी खुद को ,फिर एकाएक वैराग्य कहाँ से उदित हो गया उसके अंतर्मन में ?-''ये वैराग्य ही है या जीवन  के संघर्षों से पलायन ?'' -मैंने बेबाक होकर पूछा था स्वाति से .स्वाति से साध्वी बनने वाली मेरी सखी कोई उत्तर नहीं दे पाई थी .दे भी कैसे पाती ?मुझे पागल नहीं बना सकती थी वो .होता होगा किन्हीं के ह्रदय में वैराग्य का भाव पर मेरी सखी के ह्रदय में बहुत कोमल भावों की कलियाँ थी जो चटकना चाहती थी ,सुगंध बिखेरना चाहती थी ,किसी के ह्रदय में अपने प्रति प्रेम का दीपक जलता देखना चाहती थी और चाहती थी चूम लेना जन्म देकर किसी शिशु का भाल फिर...फिर क्यूँ मसल डाली वैराग्य के पर्दे में छिपकर अपने कोमल भावों की कलियाँ ?   ये मेरे लिए जानना  बहुत  जरूरी  था  शायद  श्वास  लेने  से  भी  ज्यादा  महत्वपूर्ण .कस्बे के इतिहास में स्वर्णिम दिन कहे जाने वाले दीक्षा समारोह के दिवस से पूर्व के दिन जिन कार्यक्रमों का आयोजन किया गया वो मानों एक    कुंवारी  लड़की के गुलाबी सपनों को आग में जलाने जैसा था .''अद्भुत पल 'कहकर दीक्षा पथ पर चल पड़ी मेरी सखी की हल्दी व् बाण रस्म सब किये गए और  उस पर सबसे वीभत्स था महिला संगीत के नाम पर समाज की अन्य युवतियों द्वारा फ़िल्मी गीतों पर मस्त  होकर  नृत्य करना . स्वाति की मम्मी इस आयोजन में शामिल नहीं हुई वो घर में एक कमरे में बैठी आंसू बहा रही थी  .  मन  में आया   कि चीखकर  कहूँ   ''बंद करो ये सब...यदि मेरी सखी वैराग्य को ह्रदय से धारण कर चुकी है  तब  ऐसे  आयोजनों  को कर उसकी  कामनाओं  को शांत  करने  की आवश्यकता  ही  क्या  है  ?   ...पर चीख  पाना  तो दूर  मेरे  होंठ तो हिले तक नहीं थे .दीक्षा वाले दिन मैंने रथ पर बैठकर कस्बे  में  भ्रमण   करती  अपनी सखी की  आँखों में देख लिया था वो विद्रोही भाव जिसे पूरा समाज वैराग्य का नाम  देकर पूज रहा था मेरी सखी के चरणों को ...पर मेरी सखी तो चुनौती दे रही थी पूरे समाज को और समारोह में उपस्थित विधायक ,राज्यमंत्री ,ऊँचें रुतबे वाले धनी परिवारों को ये कहकर की  -'' बहू बनकर आती तो प्रताड़ना सहती ...लाखों का दहेज़ भी लाती तब भी तानों  के कोड़ों  बरसाए जाते और आज अपनी अभिलाषाओं -आकांक्षाओं  को कुचल कर साध्वी बनने जा रही हूँ तो चरण-स्पर्श की होड़ लगी है .रूपये लुटाये जा रहे हैं .मैंने  अपनी बड़ी बहन के साथ हुए अन्यायों ,ससुरालियों द्वारा किये गए अत्याचारों से यही सबक लिया है की -अपनी इच्छाओं -सपनों को रौंदकर वैराग्य पथ पर बढ़ चलो . दीक्षा -पथ में आई हर अड़चन   पार करने में मैं  जो  नहीं विचलित  हुई  उसके  पीछे  दीदी  के ससुरालियों द्वारा किये गए मेरे माता-पिता  के अपमान  के प्रति  मेरा  रोष  ही  था जिसने  मुझे मेरे संकल्प  से डिगने  ही  नहीं दिया  .देखो  मेहँदी  रचकर  ,गोद  भराई  कराकर  मैं भी दुल्हन  बनी  हूँ पर केवल  इन  रस्मों-रिवाजों का परिहास उड़ने के लिए  .दो  कौड़ी  की औकात  नहीं है इस  समाज में लड़की  की पर वाही  जब  साध्वी बनने चली  तब ''हमारी  लाडली  बिटिया  ''  ''हमारी  श्रद्धेय  बहन ''  लिख  लिख  कर सड़कों  पर बैनर  लगाये  गए हैं .मेरे केश-लोचन  मनो  चुनौती हैं इसी  घटिया  समाज को -..लो  नुन्च्वा  दिए  ये बाल भी अब कैसे घसीटोगे केश पकड़कर मुझे बहू के रूप में ?युवतियां जो यहाँ मेरा तमाशा देखने श्रद्धालुओं की भीड़ में बैठी हैं वो भी मेरे मार्ग का अनुसरण कर अपने माता-पिता को लड़के  वालों  के आगे अपमानित  होने  से बचा  सकती  हैं .''...और भी न जाने   क्या क्या था मेरी सखी के दिल में उस समय पर वैराग्य था ये मैं नहीं कह  सकती  . मैं कतई  सहमत  नहीं थी जीवन  संघर्षों  से इस तरह   पलायन करने से पर वो अपना  पथ चुन  चुकी  थी .दीक्षा के संस्कार  पूर्ण  हो  चुके  थे .अब मेरी सखी के मुख पर प्रतिशोध   की पराकाष्ठा  पर पहुंचकर शांति   के अर्णव में छलांग लगा देने के भाव दिख रहे थे .वो जन जन के कल्याण के लिए तो नग्न पग चल पड़ी थी पर क्या अपने सपनों को मसलकर कोई किसी के ह्रदय में आशा  के दीप जला सकता है ?जो स्वयं परिस्थितियों की कुटिलता से घबराकर पलायन कर  जाये वो समाज को क्या सन्मार्ग के पथ पर चला पायेगा ?ये प्रश्न मेरे ह्रदय में उस दिन से आज तक जिंदा बारूद की भांति धधक रहे हैं ...

SHIKHA KAUSHIK 'NUTAN'

सोमवार, 12 अगस्त 2013

दोनों ही उत्सव हैं बंधु जीवन की सौगात !

Funeral : White casket covered with floral arrangements at a funeral service
आज  है मैंने अर्थी  देखी  कल  देखी  बारात  ,
दोनों ही उत्सव  हैं बंधु  जीवन  की सौगात  !
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बजते द्वारे ढोल -नगाड़े थाल बजाये जाते ,
विवाह-जन्म के उत्सव आँगन को चहकाते  ,
मगर खड़ी होती है एक दिन द्वारे उलटी खाट !
दोनों ही उत्सव  हैं बंधु  जीवन  की सौगात  !
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बारातों में बाराती बन शामिल होते हम सब  ,
अर्थी के पीछे चलते कर राम नाम का हम जप ,
विवाह के मंडप देखे हमने देखे शमशान -घाट !
दोनों ही उत्सव  हैं बंधु  जीवन  की सौगात  !
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शहनाई -किलकारी से आनंदित घर और आँगन ,
और कभी सन्नाटे भीषण चिर वियोग के कारण ,
कभी गुलाबी सर्दी के दिन कभी गम की है बरसात !
दोनों ही उत्सव  हैं बंधु  जीवन  की सौगात  !

शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

हरियाली तीज -''ईद मुबारक ''-की हार्दिक शुभकामनायें

हरियाली तीज -''ईद मुबारक ''-की हार्दिक   शुभकामनायें 



ईद का दिन  आ  गया   हो मुबारक आपको ,
नेकी बढे दिल में सभी  के  हो मुबारक आपको 
बरकत लिए आये ख़ुशी घर  में आज आपके 
हर साल आये ईद का दिन  हो मुबारक आपको !






 परिचय -

हरियाली तीज श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तीसरी  तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व  भारतीय  महिलाओं का विशेष त्यौहार है .यह भारत  में राजस्थान ,उत्तर प्रदेश और बिहार में विशेष रूप से  मनाया जाता है .इस दिन उपवास व् घेवर की मिठाई दोनों का विधान है.ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से माता पार्वती की कृपा से कुवारी कन्या  को  मनचाहा  वर प्राप्त होता है और सुहागन नारियों   का सुहाग अमर रहता है . मेहँदी रचाए व् नवीन वस्त्रों को धारण करें भारतीय  नारियों की शोभा देखते ही बनती है .झूलों व् हरियाली गीतों से   इस त्यौहार की रौनक  और  भी  बढ़   जाती  है .सभी भारतीय महिलाओं को ''हरियाली तीज '' की हार्दिक   शुभकामनायें .साथ  ही सभी ब्लोगर बंधुओं व्   बहनों को ''ईद मुबारक ''!  

                  शिखा   कौशिक   'नूतन '


                      

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

सच बोल पाकिस्तान !

Pakistan denies attack on Indian troops in Kashmir

Pakistan denies attack on Indian troops in Kashmir
© afp


Pakistan on Tuesday denied reports that its soldiers had killed five Indian troops in an attack on a military post in Indian-administered Kashmir. Indian officials said the attack took place some 200 kilometres south of the state capital Srinagar. 






रख के दिल पर हाथ सच बोल पाकिस्तान !
अपना गुनाह क़ुबूल कर सच बोल पाकिस्तान !!
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मक्कार तू रमजान में भी झूठ बोलता ?
अल्लाह का नहीं डर तुझे सच बोल पाकिस्तान !!
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बनकर 'शरीफ 'दोस्ती का हाथ बढाता ,
फिर काटता सिर कायर सच बोल पाकिस्तान !!
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ईमान बेच  अपना करता   है तू 'जिहाद ' ?
इस्लाम से क्या ली इज़ाज़त सच बोल  पाकिस्तान !!
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  हिन्दुस्तान के सब्र का लेता है इम्तिहान ,
पिछली शिकस्त भूल गया सच बोल पाकिस्तान !!
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जिंदा तुझे हम गाड देंगें तेरी ज़मीन पर ,
नापाक जानता है तू सच बोल पाकिस्तान !!

डॉ. शिखा कौशिक 'नूतन '
कांधला [शामली ]

रविवार, 4 अगस्त 2013



मित्रता दिवस पर सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ यह हाइकु समर्पित....

बनो यूँ बड़े
भूले नहीं सुदामा 
मित्र तुमको.

HAPPY FRIENDSHIP DAY:-))

Dr. Sarika Mukesh

ऐसे लड़के घर में रहे -लघु कथा

ऐसे लड़के घर में रहे -लघु कथा
Father_daughter : A father and his daughter looking at the sea. Stock Photo
ऐसे लड़के घर में रहे -लघु कथा
do not copy 


सुरभि ज्योंही हाथ में किताबें लेकर ट्यूशन के लिए घर से चली उसका बड़ा भाई सोनू उसे धमकाते हुए बोला -'' चल घर के अन्दर ...कोई जरूरत नहीं ट्यूशन पर जाने की .मेरे दोस्त आमिर ने बताया कि कुछ लड़के रोज़ छेड़ते हैं तुझे आते-जाते .उन सालो को तो मैं देख लूँगा पर तू चल घर में ..हमें अपनी बदनामी नहीं करवानी !!' सुरभि पलट कर कोई जवाब देती इससे  पहले  ही  सोनू के कंधे  पर पीछे  से किसी  ने हाथ रखा .सोनू ने मुड़कर देखा ये उनके पिता जी थे .पिता जी व्यंग्यमयी वाणी में बोले -'' वाह बेटा वाह ! तेरी बदनामी ? कल तेरे  कपूर अंकल  बता रहे थे तू कैसे गली के चौराहे पर दोस्तों के साथ खड़ा रहकर औरों की बहनों को छेड़ता है .सुरभि तू ट्यूशन पर चल और सोनू तू जा घर के अन्दर .कायदे में ऐसे लड़के घर के अन्दर रहें तो सड़कों का माहौल अपने आप सुधर जायेगा .'' ये कहकर पिता जी ने सोनू को अन्दर जाने का इशारा किया और स्वयं सुरभि को छेड़ने वाले लड़कों की खबर लेने के लिए सुरभि के पीछे चल दिए !!

शिखा कौशिक 'नूतन' 
मेरी  कहानियां  

शनिवार, 3 अगस्त 2013

दिल की धड़कन हिंदुस्तान ब्लोगर सम्मान ''

''दिल की धड़कन हिंदुस्तान ब्लोगर सम्मान ''

''दिल की धड़कन हिंदुस्तान ब्लोगर सम्मान ''
Animated Indian Flag
''दिल की धड़कन हिंदुस्तान ब्लोगर सम्मान ''

''सिन्दूरी सुबह है उजली हर रात है 
अपने वतन की तो जुदा हर एक बात है ''

    ऐसे ही भावों को अपने शब्दों में लिख भेजें १४ अगस्त २०१३ तक केवल इस इ मेल पर  [shikhakaushik666@hotmail.com और सर्वोतम अभिव्यक्ति के लिए पायें प्यारा सा उपहार !
शब्द सीमा -५१ शब्दों में ही समेटें अपने भारत के प्रति प्यार 

 नियम व् शर्ते
*अपनी प्रविष्टि  केवल इस इ मेल पर प्रेषित करें [shikhakaushik666@hotmail.com].अन्यत्र प्रेषित प्रविष्टि प्रतियोगिता का हिस्सा न बन सकेंगी .प्रविष्टि  के साथ अपना पूरा पता सही सही भेंजे .

* प्रतियोगिता आयोजक का निर्णय ही अंतिम माना जायेगा .इसे किसी भी रूप में चुनौती नहीं दी जा सकेगी .

*प्रतियोगिता किसी भी समय ,बिना कोई कारण बताये  रद्द की जा सकती है .

* विजेता को एक प्यारा सा  पुरस्कार  प्रदान किया जायेगा .
*उत्तर भेजने की अंतिम तिथि १४ अगस्त   २०१३ है .
*प्रतियोगिता परिणाम के विषय में अंतिम तिथि के बाद इसी ब्लॉग [हम हिंदी चिट्ठाकार हैं ] पर सूचित कर दिया जायेगा .


शिखा कौशिक 'नूतन '
[व्यवस्थापक -]