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शुक्रवार, 24 मई 2013

दूध का जला छाछ को भी फूंक कर पीता है -कहानी [सुश्री शांति पुरोहित ]

  दूध का जला छाछ को भी फूंक कर पीता  है  -कहानी [सुश्री  शांति पुरोहित  ]
Indian_bride : Rear view of bride and groom during a traditional Indian wedding ceremony
                                                                                                                                                                मीरा चाची के बेटे विनय की शादी का अवसर था | मीरा चाची को मैंने पिछले कई दिनों से आराम करते हुए नहीं देखा,बिना थके और अति उत्साह के साथ काम करने मे लगी है | ना खाने-पीने की चिंता और ना पल भर आराम करती है | बस एक ही चिंता है कि बेटे की शादी मे कोई कसर ना रहे,बहु रीमा के स्वागत मे कोई कमी ना रहे बस | शादी मे कुछ दिन ही रह गये है तो सारे रिश्तेदार और मेंहमान भी आ गये है | कहते है ना सुख -दुख मे रिश्तेदार ना आये तो क्या मजा |  घर वालो के आने से ही ख़ुशी मे चार चाँद लग जाते है | मीरा के घर मे रिश्तेदारो  की खूब चहल -पहल थी |
                                      ''जगदीश, तुम यहाँ खड़े क्या कर रहे हो,जाओ तुम हलवाई के पास ही रहो उनको किसी भी चीज के लिये परेशान ना होना पड़े | दिवाकर तुम टेन्ट वाले से सारा सामान  टाइम पर भेजने के लिये अभी ही फोन करके बोल दो,और हाँ डेकोरेशन वाले भी आ गये है' चिराग, तुम पूरा घर दुलहन की तरह सजा देना कोई कसर ना रखना |'' मीरा चाची ने डेकोरेशन वाले चिराग भाई को कहा ''गोपाल तुम सब मेहमानों के खाने,और ठरहने की व्यवस्था देखो | जाओ सब अपने अपने काम मे लग जाओ | मीरा चाची ने सब को काम समझाया| और अब वो पंडित से मांगलिक कार्य शुरू करने का शुभ मोहरत पूछने मे व्यस्त हो गयी है|''

                                       तभी चाचा ने मीरा चाची को बुलाया और कहा कि''बहु के लिये जेवर आ गये हैऔर हाँ, सोनी जी से मैंने कुछ और जेवर मंगवाए है पसंद कर लो बहु को  पहली बार खाना बनाने की रश्म अदायगी के बाद सगुन जो देना| '' जब तक मीरा आंटी ये सब काम ख़तम करती उससे पहले ही औरतो ने मंगल गीत गाकर बेटे की हल्दी की रश्म शुरू कर दी | मीरा चाची ने अपने लाडले बेटे के हल्दी लगा कर उसका माथा चूम लिया और दुसरे कामो मे व्यस्त हो गयी |
                                       दुसरे दिन मेहदी और महिला संगीत का बहुत ही भव्य कार्यक्रम हुआ सब ने बहुत ही सराहा | आज विनय की बारात धूम -धाम से बहु को लेने गयी है | अब मीरा चाची ने आज थोडा आराम किया है |
                                आखिरकार मीरा चाची की बहु घर आ गयी | बहु का खूब स्वागत किया | बेटे और बहुको देख कर मीरा चाची ख़ुशी का अनुभव कर रही थी | जैसे उनके घर मे दुनिया भर की खुशिया आ गयी हो बहु के आने से,  और मन मे ये भी सोच रखा था कि बहु को सब कुछ सौंप कर घर के काम से अब छुट्टी  ले लुंगी और  आराम का जीवन बसर करुँगी  | मीरा चाची ने दोनों को घुमने के लिये सिंगापूर भेजा| उनके लिये बेटे -बहु की खुशियों से बढ़ कर कुछ नहीं था |बेटे -बहु दस दिन बाद घूम कर वापस आ गये |दोनों बहुत खुश है |बहु ने सास का शुक्रिया माना कि उनको इतना अच्छा घुमने का मौका दिया |अब धिरे -धिरे बहु घर के काम मे लग गयी एक बहु के लिये जब वो नई -नई ससुराल आती है तो उहे पता चलता है कि उसके मायके की रीत और उसकी ससुराल की रीत मे फर्क होता है | तो रीना का भी सब तरीका जैसे रहने का ,खाना बनाने का तरीका अलग था |तो मीरा चाची ने रीमा से कहा ''चलो मे तुम्हे यहाँ के कुछ तौर- तरीके सीखा देती हूँ |फिर धीरे -धीरे तुम सब सीख जाओगी , पर रीमा ने सीधा जवाब दे दिया कि ''नहीं सीखना मुझे नया तरीका अगर मेरे तरीके से आप को रहना है तो ठीक ,नहीं तो आप ही खाना बनाते रहिये |''ये सुन कर चाची को बहुत ही हैरानी हुई |अब तो दिन ब दिन उसका व्यवहार बिगड़ता ही जा रहा था |अब चाचा -चाची को दुःख तो इस बात का ज्यादा हो रहा था कि ये सब देखने के बावजूद भी विनय अपनी पत्नी को कभी कुछ नहीं बोलता था | अभी शादी को दो माह ही हुए थे | एक दिन मीरा आंटी ने बहु से कहा''रीमा ''मुझे एक कप चाय दे दो आज सर मे बहुत दर्द है|''कितनी बार चाय बनाउ क्या मे चाय और खाना बनाने के लिये ही आई हूँ यहाँ,मेरे पास भी करने को और भी काम है और हाँ चाय तो आप भी बना सकती है,इतना बड़ा जवाब देकर रीमा अपने कमरे मे तम -तमाती चली गयी |
                              मीरा आंटी बहु से ये सब सुन कर हैरान हो गयी उसने बहु से ऐसा तो कुछ कहा नहीं कि उसे इतना गुस्सा करना पड़ा | बहु से इतना तो हर सास -ससुर उम्मीद रखते है कि बहु खाना नाश्ता और चाय तो बना कर दे| मीरा चाची को बहु के इस बर्ताव से बहुत ठेस पहुंची है पर उन्होंने तय किया कि विनय के पापा को ये सब वो नहीं बताएगी |
                               लेकिन बात यही पर ही ख़तम नहीं होती है अब तो रीमा का जैसे ये रोज का ही काम हो गया था | अब तो ससुर जी के सामने भी वो ये सब करने लगी थी | उस दिन विनय के पापा को जल्दी ऑफिस जाना था | मीरा भी रसोई मे गयी है रीमा की मदद करने, लेकिन रसोई तो बंद पड़ी थी | और उसी वक्त रीमा तैयार होकर पहले से ही तय किट्टी पार्टी मे अपने दोस्तों के साथ चली गयी | मीरा चाची हैरान रह गयी अब इतनी जल्दी वो अकेली कैसे खाना बनाएगी | बहु को विनय के पापा ने भी देखा जाते हुए उन्हें बहुत गुस्सा आया पर मीरा चाची ने बोलने से मना किया उनका ये मानना है कि घर की औरतो के बीच मे आदमी को नहीं बोलना चाहिए घर का माहौल और बिगड़ जाता है | बहुत बार बोलना चाहा उन्होंने पर हर बार चाची उन्हें चुप करा देती थी| वो अपनी पत्नी को बहु से कुछ भी सुनते हुए देखते तो दुखी हो जाते थे |
                                  ऐसा कब तक बर्दास्त किया जा सकता है आखिरकार एक साल के बाद उन्होंने एक फैसला किया | उस रात जब सब खाना खा रहे थे, तो चाचा ने विनय को एक चाबी दी और कहा कि ''विनय ये तुम्हारे लिये नए घर की चाबी है| तुम कल से ही वहां चले जाओ | तुम्हारी पत्नी का बर्ताव अब बर्दाश्त नहीं होता | जब घर तुम्हारी मम्मी को ही संभालना है तो दिल मे सुकून तो होना चाहिए ना | अब मीरा चाची और अखिलेश चाचा छोटे बेटे रंजन के साथ आराम से रहने लगे | रंजन का इंजीनियरिंग का अन्तिम वर्ष चल रहा था |
                                 मीरा चाची उन कडवी यादो को भूल जाना चाहती थी पर वो अनचाही यादे उनका दामन ही नहीं छोड़ रही थी | अक्सर मीरा चाची और अखिलेश चाचा बाते करते है कि अब छोटे बेटे की शादी करनी है |पर अभी तक बड़ी बहु के व्यव्हार से डरे हुए है | पर इस कारण रंजन को कुंवारा तो नहीं रख सकते | पर लड़की अगर रीमा जैसी ही निकली तो फिर से वो सब देखना पड़ेगा | पर ये जिम्मेदारी भी पूरी तो करनी है तो अब लड़की की तलाश शुरू हुई |
                                   पर रंजन ने तय कर लिया था कि उसे शादी नहीं करनी है |भाभी के लिये उसके दिल मे एक माँ जैसे छवि थी|  भाभी के लिये एक सम्मान की भावना थी, पर भाभी ने अपने बेरुखेपन से सब धूमिल कर दिया | अब वो शादी करके अपने और अपने माता पिता को और दुखी नहीं करना चाहता था | मीरा चाची ने उसे समझाया की सब लडकिया एक जैसी थोड़ी होती है |पर उसको कैसे यकीन दिलाया जाये |
                                        मीरा चाची ने अपनी इस उलझन के साथ रंजन के लिये लड़की देखने का सिलसिला शरू किया | कुछ रिश्ते इनको नहीं जंचते होते थे और कुछ अपनी लड़की का रिश्ता इनके यहाँ नहीं करना चाहते थे | अब इनके सामने डर के साथ निराशा भी थी | समय बीतता रहा आखिरकार अखिलेश चाचा की बहन ने एक रिश्ता बताया | आज सब रेणु को देखने उसके घर जा रहे है | रेणु तो एक नजर मे ही सब को पसंद आ गयी थी | वो थी भी बहुत सुंदर,चंचल और उसकी माँ ने बताया पढ़ी लिखी होने के साथ -साथ वो घर के सब काम मे दक्ष है | संस्कारो वाली लड़की थी |
                                       अब मीरा चाची के घर फिर से शहनाई बजेगी फिर से घर मे बहु आएगी सब खुश थे,पर फिर भी जेहन मे कहीं दूर हल्का सा डर भी था कि ..........
    रेणु ने अपने शादी को लेकर बहुत से अरमान अपने दिल मे सजा के रखे है | रेणु को खुले विचारो वाली सास पसंद थी | पति बहुत प्यार करने वाला हो और ससुर जी पिता के समान उसे अपनी बेटी समझे इस तरह उसने और भी कई अरमान दिल मे सजा कर रखे है |
                                      पर यहाँ तो सब उल्टा ही मिला सास ने कभी किसी काम की तारीफ नहीं की और ना ही झगड़ा किया रंजन ने भी ज्यादा प्यार नहीं दिखाया | अब रेणु क्या करे उसने ये तो सोचा भी नहीं था कि ऐसा सब होगा |कई बार रेणु ने जानना चाहा कि ऐसा क्यों कर रहे है क्या बात है पर कोशिश करने पर भी कुछ नहीं हुआ | धिरे -धिरे रेणु की तबियत बिगड़ने लगी तो मीरा चाची को भी फिक्र हुई | समय ऐसे ही बीतता रहा |दो साल होने को आये रेणु को अपनी ससुराल मे| एक दिन अचानक अखिलेश चाचा को दिल का दौरा पड़ा | उनको अस्पताल मे भर्ती किया गया | इस संकट की घड़ी मे बड़ी बहु रीमा ने कुछ देर के लिये आकर महज औपचारिकता ही पूरी करी | पर रेणु ने अपना पूरा क्रतव्य निभाया सुबह से लेकर शाम तक वो सेवा मे लगी रहती | ससुरजी को दवा देना सास के लिये खाना लाना और फिर घर मे रंजन के लिये नाश्ता बनाना आदि सब कुछ वो कर रही थी |पन्द्रह दिन बाद ससुरजी को अस्पताल से छुटी दे दी गयी |
                                इन पंद्रह दिनों मे रेणु का अपने ससुराल वालो के प्रति प्यार देखकर मीरा चाची को बहुत अच्छा लगा | और उन्होंने सोचा कि इतनी अच्छी बहु के साथ हम इतने दिनों क्यों प्यार नहीं जता पाए ये तो आई तब से ही इसने हम सब की कितनी सेवा की है हमने इसे समझने मे कितनी देर लगा दी पर हम भी क्या कर सकते है बड़ी बहु रीमा के कारण ये सब रेणु के साथ करना पड़ा कहते है ना कि दूध का जला छछ को भी फूंक कर पीता है तभी रेणु सास के कमरे मे चाय देने आयी रेणु को देख कर मीरा चाची अपने को रोक नहीं सकी और झट से रेणु को गले से लगाया और अपने रूखे वयवहार के लिये माफ़ी मांगी | रेणु तो कब से तरस रही थी सास के प्यार पाने के लिये रेणु संस्कारो वाली थी कहा ''माँ आज मेरा इस घर मे आना सार्थक हुआ है आपने मुझे दिल से अपनाया |''है और सास बहु दोनों की आँखों ख़ुशी के आंसू थे |
   
                           शांति पुरोहित
लेखिका का परिचय -
नाम ;शांति पुरोहित 

जन्म तिथि ; ५/ १/ ६१ 

शिक्षा; एम् .ए हिन्दी 

रूचि -लिखना -पढना

जन्म स्थान; बीकानेर राज.

वर्तमान पता; शांति पुरोहित विजय परकाश पुरोहित 

कर्मचारी कालोनी नोखा मंडीबीकानेर राज .

14 टिप्‍पणियां:

Shikha Kaushik ने कहा…

.बहुत सुन्दर ... .मन को छू गयी आपकी कहानी .आभार . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
BHARTIY NARI .

Shalini kaushik ने कहा…

.मन को छू गयी आपकी कहानी .आभार . कुपोषण और आमिर खान -बाँट रहे अधूरा ज्ञान
साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN

Unknown ने कहा…

बहुत शुक्रिया शालिनी जी सराहना के लिए

Unknown ने कहा…

शिखा जी सराहना के किये बहुत शुक्रिया

NEERAJ JOSHI ने कहा…

आपकी कहानी से यही सीख मिलती है कि हमे पूर्वाग्रह के साथ किसी से व्‍यवहार नहीं करना चाहिए बल्कि सामने वाले के व्‍यवहार के अनुसार उससे व्‍यवहार रखना चाहिए। मीरा जी ने बेटों की बहुओं के साथ किए जाने वाले वास्‍तविक व्‍यवहारा में देरी की, विनय की पत्‍नी रीना को बहुत पहले अलग कर देना चाहिए था और रंजन की पत्‍नी रेणू को बहुत पहले पास ही रखना चाहिए था। दूध का जला भले ही छाछ फूंक कर पीता हो मगर यदि वही दूध का जला पानी को भी फूंक फूंक कर पिए तो ऐसे लोगों को क्‍या कहें। हालांकि रीना शुरूआत में सास-ससुर के अति प्‍यार से तथा रेणे अति उपेक्षा से परेशान हो गई थी मगर संकट के समय रेणू ने अपना कर्तव्‍य निभाकर परिस्थितियों को सुखद कर लिया। रीना भी ऐसा कर सकती है मुझे इस कहानी में आगे रीना के भी सुधरने की पूरी संभावना लगती है, मुझे आशा है कि आप अपनी अगली कहानी में जरूर रीना को भी सुधरने का मौका उपलब्‍ध कराएंगी।

Unknown ने कहा…

Shukriya neeraj.

nayee dunia ने कहा…

बहुत सुंदर कहानी है ये , कई बार हमारे कटु अनुभव हमे आयेज कदम सावधानी से बढ़ने को मज़बूर कर देती है ....बधाई आपको शांति जी

अरुणा ने कहा…

बहुत अच्छी कहानी शांति जी जिंदगी में ऐसे अवसर आते रहते हैं जब हमें लगता है फैसला गलत था ........और ये सब हमारा अनुभव हमसे करवाता है ..................

Unknown ने कहा…

कई बार हमारे आस-पडौस मे ऐसा होता है |
अरुणा जी सराहना के लिए शुक्रिया |

Unknown ने कहा…

उपासना सराहना के लिए बहुत शुक्रिया |

નીતા કોટેચા ने कहा…

bahut achchi kahani, aapne aur ek msg dene ki koshish ki hai..bahu ki taraf se bahut kam kahaniya hoti hai.. bahut achchi kahani shanti ji..likhte rahiyega...

Unknown ने कहा…

Dhnyavad neeta kotecha

Madan Mohan Saxena ने कहा…


वाह . बहुत सार्थक प्रस्तुति
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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Unknown ने कहा…

जी,जरुर मदन जी|
सराहना के लिए शुक्रिया