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गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

अफ़रोज़ ,कसाब-कॉंग्रेस के गले की फांस

अफ़रोज़ ,कसाब-कॉंग्रेस के गले की फांस
Delhi Gangrape Case : sixth accused in the case as minor as unfortunate, says father
दिल्ली गैंगरेप कांड के एक आरोपी अफ़रोज़ के नाबालिग होने के कारण उसकी इस कांड में सर्वाधिक वहशी संलिप्तता होने के बावजूद उसे नाममात्र की ही सजा मिलने की बात है और इसलिए एक प्रश्न यह भी उठाया जा रहा है कि यदि कसाब भी नाबालिग होता तो क्या वह भी छूट जाता ? 
दिल्ली गैंगरेप कांड के एक आरोपी अफ़रोज़ के नाबालिग होने के कारण उसकी इस कांड में सर्वाधिक वहशी संलिप्तता होने के बावजूद उसे नाममात्र की ही सजा मिलने की बात है और इसलिए एक प्रश्न यह भी उठाया जा रहा है कि यदि कसाब भी नाबालिग होता तो क्या वह भी छूट जाता ?   इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें भारतीय कानून का गहराई से विभिन्न पहलूओं पर अवलोकन करना होगा .
   किशोर न्याय [बालकों की देखभाल व् संरक्षण ]अधिनियम २००० की धारा २ k के अनुसार किशोर से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जिसने १८ वर्ष की आयु पूरी न की हो .

  और इसी अधिनियम  की धारा १६ कहती है कि किसी किशोर को जिसने कोई अपराध किया है मृत्यु या आजीवन कारावास का दंड नहीं दिया जायेगा और न ही प्रतिभूति या जुर्माना जमा करने में चूक होने पर कारावासित किया जायेगा  ......इसी धारा में आगे कहते हुए ये भी कहा गया है कि किशोर जिसने १६ साल की आयु पूरी कर ली है और उसका अपराध गंभीर प्रकृति का है और उसका आचरण व् व्यवहार ऐसा नहीं है कि स्पेशल होम भेजना उसके व् अन्य किशोरों के हित में हो तो बोर्ड उसे अन्य सुरक्षित स्थल में भेजेगा और आगे की कार्यवाही के लिए राज्य सरकार को रिपोर्ट करेगा .
किन्तु राज्य सरकार भी अन्य व्यवस्थाएं करते हुए किशोर के लिए निर्धारित अवधि के कारावास से अधिक के निरोध का आदेश नहीं दे सकती .
    दूसरी ओर भारतीय संविधान का अनुच्छेद १४ यह उपबंधित करता है कि ''भारत राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से अथवा विधियों के समान संरक्षण से राज्य द्वारा वंचित नहीं किया जायेगा .''......और अनुच्छेद १४ का यह संरक्षण नागरिक और अनागरिक दोनों को प्राप्त है और विधि के समक्ष समता व् विधियों के समान संरक्षण दोनों वाक्यांशों का एक ही उद्देश्य है -समान न्याय  और इसके अनुसार ये अधिकार नागरिक व् विदेशी को समान रूप से प्राप्त हैं .विधि की दृष्टि में सभी व्यक्ति समान हैं और एक जैसी विधियों से नियंत्रित होंगे .अर्थात भारत में दोहरी विधि प्रणाली प्रचलित नहीं है .  

ऐसे में यदि कसाब नाबालिग होता तो वह भी इस संरक्षण का अधिकारी होता जिसका अधिकारी आज अफ़रोज़ हो रहा है .
   अब एक बात और जिसका आलोचकों द्वारा बहुतायत में ढोल पीटा जा रहा है कि अफ़रोज़ को मुस्लमान होने की वजह से बचाया जा रहा है तो ये जानकारी तो उन्हें होनी ही चाहिए कि ये इस देश का कानून है जो अफ़रोज़ को देखकर नहीं बनाया गया और हमारा कानून धर्म,मूलवंश,लिंग,जाति जन्मस्थान के आधार पर अनु.१५ के अंतर्गत विभेद को प्रतिषिद्ध करता है अर्थात यहाँ कोई धर्म ,मूलवंश ,जाति,लिंग जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का शिकार नहीं होगा .

यहाँ दिल्ली सरकार  कानून के अनुसार कार्य कर रही है इसलिए इस मामले में उसे कोई दोष नहीं दिया जा सकता यदि कोई दोष दिया भी जायेगा तो हमारी कानून व्यवस्था को दिया जायेगा जो भावी समस्याओं को देखते हुए किसी कानूनी दंड का पहले किये गए अपराध पर लागू किये जाने का प्रबंध नहीं करती .
  कानून व्यवस्था बनाये रखना राज्य सूची का विषय है और ऐसे में दिल्ली सरकार अपनी लापरवाह व्यवस्था की दोषी है किन्तु नित नयी घटती ऐसी दुखद घटनाएँ हमारी कानूनी व्यवस्था में अमूल चूल परिवर्तन की बात जोह रही हैं जिसका दारोमदार केन्द्रीय  व्यवस्थापिका  का है और ऐसी घटनाएँ जो बहुत पहले से घट रही हैं उन्हें देखते हुए उसके द्वारा सही कदम न उठाया जाना जितना सत्तारूढ़ दल को दोषी बनत है उतना ही दोष वह अन्य दलों जिसमे लगभग सम्पूर्ण विपक्ष आता है ,का भी है .जो अपने राजनीतिक दांवपेंचों में ही उलझे रहते हैं किन्तु उस ओर ध्यान नहीं देते जिसके संरक्षण व् विकास के लिए जनता उन्हें वहां भेजती है .और तो और दोषी हमारी जनता हम सभी हैं क्योंकि नेता ही नहीं हम भी तब जागते हैं जब पानी सिर के ऊपर  से गुजर जाता है .
  और अंत में ,अफ़रोज़ को यदि मुसलमान होना की वजह से बचाया जा रहा है तो ऐसा कहने वाले बुद्धिजीवियों से मेरा यही कहना  है कि कसाब भी एक मुसलमान था और उसे भले  ही दूसरे  राज्य में फांसी पर लटकाया गया हो पर सरकार वहां भी कॉंग्रेस की ही है इसलिए इस संकीर्ण मानसिकता में वे देश के  सर्वाधिक प्रभावशाली दल को न लपेटें तो देश हित में उत्तम कार्य होगा .साथ ही  वर्तमान सरकार की आलोचना कर आलेखों के जरिये अपनी बुद्धि का दुरूपयोग करने वाले प्रबुद्ध जन यदि अफ़रोज़ का बालिग होना  साबित कर उसे दामिनी के साथ किया गए वीभत्स कृत्य करने की सही सजा दिला दें तो शायद अपनी लेखन क्षमता के साथ भी न्याय करेंगे और दामिनी की आत्मा व् समस्त नारी समुदाय के साथ भी .
              शालिनी कौशिक                 [कानूनी ज्ञान ]


3 टिप्‍पणियां:

Pratibha Verma ने कहा…

मारा कानून बहुत पुराना हो चूका है ....इसमें बदलाव की जरूरत है ...पता नहीं कबसे वही पुरानी नीतियों पर चल रहा है ...समय के साथ हर जगह बदलाव जरूरी है ...और वैसे भी दोनों की करतूतों को एक दूसरे के साथ जोड़ना ...किस हद तक सही है ...

shalini rastogi ने कहा…

बहुत सही व तथ्यपरक लेख लिखा है शालिनी जी...
इस मसले पर राजनैतिक रोटियां सकने की जगह न्याय व्यवस्था की समुचित समीक्षा की ज़रूरत है |

Rajesh Kumari ने कहा…

जिसने इतना बड़ा जघन्य अपराध किया है जो चाहे तो कई बच्चों का बाप बन सकता है उसे नाबालिग कहकर उसका बचाव और अपराधों को जन्म देगा दूसरे देश कि नजरें कान इधर ही हैं हमारी इस कमजोरी को इस्त्माल में ला सकते हैं किसी भी नाबालिग को भेज कार कोई भी बड़े से बड़ा अपराध करवा सकते हैं अब जरूरत है क़ानून में बदलाव कि अपराधों के मापदंडों पर सजा कायम हो जिसने होशोहवास में ये जघन्य काम किया है उसे नाबालिग केटेगरी का लाभ नही मिलना चाहिए यदि कानून सजा नही दे सकता तो उसे जनता को सौंप दे ख़ुद फेंसला कर देगी