एक ने मेरा टॉप खींच दिया, दूसरे का हाथ कमर पर था'
दीप गंभीर
नई दिल्ली।। 'एक आदमी ने मेरे टॉप को नीचे खींच दिया और एक हाथ पीछे मेरी कमर पर था। मेरे साथ मेट्रो में सफर कर रहे लोग हंस रहे थे।' यह किसी फिल्म या कहानी का डायलॉग नहीं है। यह एक लड़की की आपबीती है। वाकया रविवार शाम देश की राजधानी दिल्ली की सबसे सेफ और आसान पब्लिक ट्रांसपोर्ट मानी जाने वाली मेट्रो में हुआ। रिचा (बदला नाम) जब अपनी एक दोस्त के साथ शाम साढ़े सात बजे राजीव चौक मेट्रो स्टेशन से ब्लू लाइन की मेट्रो में चढ़ी तो महिला कोच में न जाने की बजाय जनरल कोच में ही बैठ गई
नई दिल्ली।। 'एक आदमी ने मेरे टॉप को नीचे खींच दिया और एक हाथ पीछे मेरी कमर पर था। मेरे साथ मेट्रो में सफर कर रहे लोग हंस रहे थे।' यह किसी फिल्म या कहानी का डायलॉग नहीं है। यह एक लड़की की आपबीती है। वाकया रविवार शाम देश की राजधानी दिल्ली की सबसे सेफ और आसान पब्लिक ट्रांसपोर्ट मानी जाने वाली मेट्रो में हुआ। रिचा (बदला नाम) जब अपनी एक दोस्त के साथ शाम साढ़े सात बजे राजीव चौक मेट्रो स्टेशन से ब्लू लाइन की मेट्रो में चढ़ी तो महिला कोच में न जाने की बजाय जनरल कोच में ही बैठ गई
उसके बाद जो कुछ भी रिचा के साथ हुआ उसे उसने खुद 'यूथ की आवाज' नामक वेबसाइट पर ब्लॉग में लिखा है। रिचा ने लिखा है,'राजीव चौक के कुछ स्टेशन बाद ही एक स्टेशन पर 50-60 लोगों की भीड़ मेट्रो में चढ़ी और मुझे अपने जनरल कंपार्टमेंट में चढ़ने के फैसले पर पछतावा हुआ। कुछ ही देर में कुछ लोग हर तरफ से मुझे दबाने लगे और वे सब मेरी तरफ देख रहे थे। नजरें मेरे चेहरे पर नहीं, उन अंगों पर थीं जिससे लोग उत्तेजित होते हैं। इसी दौरान मेरा स्टेशन आ गया और मैं दरवाजे की ओर गई, तभी एक आदमी ने मेरे टॉप को नीचे खींच दिया और कुछ पल के लिए मेरी छाती निर्वस्त्र हो गई। इसी दौरान एक हाथ पीछे मेरी कमर पर था।'
वह आगे लिखती हैं, 'मैंने पास खड़े लोगों को देखा, वे हंस रहे थे। मैंने उन्हें गालियां दीं और मेट्रो से बाहर आ गई। उनमें से किसी ने मेरी मदद नहीं की। उन्होंने मेट्रो नहीं रुकवाई और न ही पुलिस को फोन किया। मैं मेट्रो से बाहर आ गई और अब कई चीजों से मेरा विश्वास उठ चुका है। अगर दिल्ली के पुरुष इतने कुंठित हैं तो क्यों किसी कोठे पर जाकर अपनी हवस नहीं मिटाते। मेट्रो जैसी जगह पर आज मैं तो कल किसी और को कब तक ऐसी घटनाओं का शिकार होना होगा।'
वह आगे लिखती हैं, 'मैंने पास खड़े लोगों को देखा, वे हंस रहे थे। मैंने उन्हें गालियां दीं और मेट्रो से बाहर आ गई। उनमें से किसी ने मेरी मदद नहीं की। उन्होंने मेट्रो नहीं रुकवाई और न ही पुलिस को फोन किया। मैं मेट्रो से बाहर आ गई और अब कई चीजों से मेरा विश्वास उठ चुका है। अगर दिल्ली के पुरुष इतने कुंठित हैं तो क्यों किसी कोठे पर जाकर अपनी हवस नहीं मिटाते। मेट्रो जैसी जगह पर आज मैं तो कल किसी और को कब तक ऐसी घटनाओं का शिकार होना होगा।'
1 टिप्पणी:
darindagi ki prakastha hai .....
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