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सोमवार, 22 अप्रैल 2013

जिम्मेदारी से न भाग-जाग जनता जाग

 जिम्मेदारी से न भाग-जाग जनता जाग
 
दिल्ली के गांधीनगर में पांच वर्षीय गुडिया के साथ हुए दुष्कर्म ने एक बार फिर वहां की जनता को झकझोरा और जनता जुट गयी फिर से प्रदर्शनों की होड़ में .पुलिस ने एफ.आई.आर.दर्ज नहीं की ,२०००/-रूपए दे चुप बैठने को कहा और लगी पुलिस पर हमला करने -परिणाम एक और लड़की दुर्घटना की शिकार -ए.सी.पी. ने लड़की के ऐसा चांटा मारा कि उसके कान से खून बहने लगा .
        बुरी लगती है सरकार की प्रशासनिक विफलता ,घाव करती है पुलिस की निर्दयता किन्तु क्या हर घटना का जिम्मेदार सरकार को ,पुलिस को कानून को ठहराना उचित है ?क्या हम ऐसे अपराधों के घटित होने में अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं देखते ?
       १५ फरवरी सन १९९७कांधला   जिला मुजफ्फरनगर में एक दुकान में डाक्टरी कर रहे एक डाक्टर का सामान दुकान मालिक द्वारा नहर में डाल दिया गया ,सुबह जब वह अपने क्लिनिक में पहुंचा तो वहां कोई सामान न देख वह मामला समझ मार-पीट पर उतारू हो गया .दोनों तरफ से लोग जुटे और जुट गयी एक भीड़ जो तमाशबीन कही जाती है .वे डाक्टर को कुल्हाड़ी से ,लाठी से पीटते मारते रहे और जनता ये सब होते देखती रही .क्यों नहीं रोका किसी ने वह अपराध घटित होने से ?जबकि भीड़ अगर हस्तक्षेप करती तो एक निर्दोष की जान बच सकती थी और एक बाप व् उसके दो बेटे अपराधी बनने से बच सकते थे .

     २ अप्रैल २०१३ परीक्षा ड्यूटी से वापस लौटती चार शिक्षिका बहनों पर तेजाबी हमला किया गया .एक बहन ने एक आरोपी को पकड़ा भी किन्तु वह अकेली उसे रोक नहीं सकती थी वह छूटकर फरार हो गया और वे बहने खुद ही रिक्शा कर अस्पताल गयी जबकि यह वह समय था जब परीक्षा छूटने के कारण सड़क पर अच्छी खासी भीड़ भाड़ थी .क्यों नहीं मदद की किसी ने उन बहनों की ?जबकि अगर जनता आगे आती तो आरोपी इतनी भीड़ में से भाग नहीं सकते थे और जनता उन्हें वहीँ पकड़कर पीट पीटकर अधमरा कर पुलिस के हवाले कर सकती थी .
   क्यों हम हर अपराध का दोष सरकार ,पुलिस व कानून पर थोपने लगते हैं ? हम ही तो हैं जो हर जगह हैं ,हर अपराध होते देखते हैं और अनदेखा करते हैं ,हम ही तो हैं जो एक चोर के पकडे जाने पर उसे पीटने पर तुल जाते हैं ,फिर क्यों बसों में ,सडको पर हुई छेड़खानी पर चुप रहते हैं ? क्यों नहीं तोड़ते अपराधियों के हौसले ? जबकि हम जनता हैं ,हम सब कर सकते हैं ,जनता जब अपनी पर आ जाये तो देश आज़ाद कराती है,जनता जब अपनी ताकत आजमाए तो कठोर कानून पारित कराती है .जनता में वह ताकत है जो बड़े से बड़े निज़ाम को पलटकर रख देती है फिर क्या अपराध और क्या अपराधी? हम अगर चाहें तो ऐसी घटनाओं को नज़रन्दाज न करते हुए जागरूकता से काम लें किसी छेड़खानी को कम से कम अब तो हल्के में न लें और समाज में अपनी जिम्मेदारी समझते हुए औरों को तो गलत काम से रोकें ही अपनों के द्वारा किये जाने वाले ऐसे कुत्सित प्रयासों को हतोत्साहित करें .बच्चे जो ऐसी घटनाओं का विरोध करने में अक्षम हैं उनके प्रति सर्वप्रथम उनके अभिभावकों का ही यह कर्तव्य है कि वे बच्चों को अनजानों के प्रति सतर्क करें और समझाएं कि वे किसी भी अनजानी जगह या अनजाने व्यक्ति की ओर आकर्षित न हों . .वे अपने बच्चों को वह समझ दें कि बच्चे अपने मन की हर बात उनसे कर सकें .हर दुःख दर्द उनसे बाँट सकें  न कि उनसे ही सहमे रहें क्योंकि कोई भी घटना एक बार में ही नहीं हो जाती. अगर बच्चे को माँ बाप से ऐसी समझ मिली होगी तो अपराध तैयारी नहीं तो कम से कम उसके प्रयास के समय पर अवश्य रोक दिया जायेगा .
     सरकार की, पुलिस की ,कानून की जिम्मेदारी बनती है .ये अगर चुस्त-दुरुस्त हों ,कड़े हों तो ऐसे अपराध करने से पहले अपराधी सौ बार सोचेगा किन्तु यदि जनता ही ऐसे मामलों में आक्रामक हो,जागरूक हो तो अपराधी ऐसे अपराध करने की एक बार तो क्या हज़ार बार भी नहीं सोचेगा .हमें जागने की की ज़रुरत है और अपनी जिम्मेदारी समझने की .कवि श्रेष्ठ दुष्यंत कुमार ने भी कहा है -
  ''हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए ,
     इस हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए ,
        सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं ,
             मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए .''

शालिनी कौशिक
    [कौशल ]

हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते ?



घृणा और जुगुप्सा के मारे दो तीन दिन से संज्ञाशून्य होने जैसी स्थिति हो गयी है ! शर्मिंदगी, क्षोभ और गुस्से का यह आलम है कि लगता है मुँह खोला तो जैसे ज्वालामुखी फट पड़ेगा ! यह किस किस्म के समाज में हम रह रहे हैं जहाँ ना तो इंसानियत बची है, न दया माया ना ही मासूम बच्चों के प्रति ममता और करुणा का भाव ! इतना तो मान कर चलना ही होगा कि इस तरह की घृणित मानसिकता वाले लोग जानवर ही होते हैं ! अब चिंता इस बात की है कि प्रतिक्षण बढ़ने वाली जनसंख्या में ऐसे जानवर कितने पैदा हो रहे हैं और कहाँ कहाँ हो रहे हैं इस आँकड़े का निर्धारण कैसे हो ! समस्या का हल सिर्फ एक ही है कि इन जानवरों को इंसान बनाना होगा ! उसके लिये जो भी उपाय हो सकते हैं किये ही जाने चाहिये ! सबसे पहले पोर्न फ़िल्में और वीडियोज दिखाने वाले टी वी चैनल्स पर तत्काल बैन लगा दिया जाना चाहिये ! फिल्मों में दिखाये जाने बेहूदा आइटम सॉंग्स, अश्लील दृश्य व संवाद, जो आजकल फिल्म की सफलता की गारंटी माने जाते हैं, सैंसर बोर्ड द्वारा पास ही नहीं किये जाने चाहिये ! समाज का एक अभिन्न अंग होने के नाते महिलाओं की भी जिम्मेदारी होती है कि समाज में हर पल बढ़ते इस मानसिक प्रदूषण को रोकने के लिये कुछ कारगर उपाय करें ! इसलिये केवल खोखली शोहरत और धन कमाने के लिये अभिनेत्रियों व मॉडल्स को ऐसी फिल्मों व विज्ञापनों में काम करने से मना कर देना चाहिये जिन्हें देख कर समाज के लोगों की मानसिकता पर दुष्प्रभाव पड़ता हो ! स्त्री एक माँ भी होती है ! अपने बच्चों को गलत रास्ते पर जाने से रोकने के लिये एक माँ हर संभव उपाय अपनाती है ! आज भारतीय समाज भी ऐसे ही निरंकुश, पथभ्रष्ट और संस्कारविहीन लोगों से भरता जा रहा है ! महिलाओं को माँ बन कर उन्हें सख्ती से रास्ते पर लाना होगा और इसके लिये सरकार को भी कुछ सख्त कदम उठा कर क़ानून कायदों को प्रभावी और समाजोपयोगी बनाना होगा ! पश्चिमी संस्कृति का जब और सारी बातों में अनुसरण किया जाता है तो इस बात में भी तो किया जाना चाहिये कि वहाँ की क़ानून व्यवस्था कितनी सख्त और पुख्ता है और उसका इम्प्लीमेंटेशन कितना त्वरित और असरदार होता है ! वहाँ किसी व्यक्ति के खिलाफ, बलात्कार तो बहुत बड़ी बात है, यदि ईव टीज़िंग की शिकायत भी दर्ज कर दी जाती है तो उसे सज़ा तो भुगतनी  ही पड़ती है उसके अलावा हमेशा के लिये उसका रिकॉर्ड खराब हो जाता है और उसे कहीं नौकरी नहीं मिलती ! हमारे देश में विरोध करने वालों की सहायता करने की बजाय पुलिसवाले उन पर हाथ उठाते हैं और उन्हें पैसे देकर मामला दबाने के लिये मजबूर करते हैं !
दामिनी वाला हादसा जब हुआ था तब भी मैंने इस विषय पर एक पोस्ट डाली थी और अपनी ओर से कुछ सुझाव दिये थे ! आज फिर उस आलेख का यह हिस्सा दोहरा रही हूँ ! दामिनी के साथ क्या हुआ, क्यों हुआ उसे दोहराना नहीं चाहती ! दोहराने से कोई फ़ायदा भी नहीं है ! हमारा सारा ध्यान इस बात पर केन्द्रित होना चाहिए कि जो हैवान उसके गुनहगार हैं उनके साथ क्या हो रहा है और क्या होना चाहिए ! देश की धीमी न्याय प्रक्रिया पर हमें भरोसा नहीं है ! यहाँ कोर्ट में मुकदमे सालों तक चलते हैं और ऐसे खतरनाक अपराधी जमानत पर छूट कर फिर उसी तरह के जघन्य अपराधों में लिप्त होकर समाज के लिए खतरा बन कर बेख़ौफ़ घूमते रहते हैं !
भागलपुर वाले केस को आप लोग अभी तक भूले नहीं होंगे जिसमें बारह साल पहले एक ऐसी ही साहसी और बहादुर लड़की पर गुंडों ने प्रतिरोध करने पर एसिड डाल कर उसका चेहरा जला दिया था ! वह लड़की अभी तक न्याय के लिए प्रतीक्षा कर रही है और उसके गुनहगार सालों से जमानत पर छूट कर ऐशो आराम की ज़िंदगी बसर कर रहे हैं साथ ही अपने गुनाहों के सबूत मिटा रहे हैं !
मेरे विचार से ऐसे गुनहगारों को कोर्ट कचहरी के टेढ़े-मेढ़े रास्तों, वकीलों और जजों की लम्बी-लम्बी बहसों और हर रोज़ आगे बढ़ती मुकदमों की तारीखों की भूलभुलैया से निकाल कर सीधे समाज के हवाले कर देना चाहिए ! सर्व सम्मति से समाज के हर वर्ग और हर क्षेत्र से प्रबुद्ध व्यक्तियों की समिति बनानी चाहिए जिनमें प्राध्यापक, वकील, जज, कलाकार, गृहणियाँ, डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, व्यापारी, साहित्यकार व अन्य सभी विधाओं से जुड़े लोग शामिल हों और सबकी राय से उचित फैसला किया जाना चाहिए और गुनहगारों को दंड भी सरे आम दिया जाना चाहिए ताकि बाकी सभी के लिए ऐसा फैसला सबक बन सके !
ऐसे अपराधियों के माता-पिता से पूछना चाहिए कि वे अपने ऐसे कुसंस्कारी और हैवान बेटों के लिए खुद क्या सज़ा तजवीज करते हैं ! अगर वे अपने बच्चों के लिए रहम की अपील करते हैं तो उनसे पूछना चाहिए की यदि उनकी अपनी बेटी के साथ ऐसी दुर्घटना हो जाती तो क्या वे उसके गुनहगारों के लिए भी रहम की अपील ही करते ? इतनी खराब परवरिश और इतने खराब संस्कार अपने बच्चों को देने के लिए स्वयम् उन्हें क्या सज़ा दी जानी चाहिए ? दामिनी, गुड़िया या इन दरिंदों की हवस का शिकार हुई उन जैसी अनेकों बच्चियों के गुनाहगारों पर कोल्ड ब्लडेड मर्डर का आरोप लगाया जाना चाहिए और उन्हें तुरंत कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिये !
लेकिन यह भी सच है कि हमारे आपके चाहने से क्या होगा ! होगा वही जो इस देश की धीमी गति से चलने वाली व्यवस्था में विधि सम्मत होगा ! मगर इतना तो हम कर ही सकते हैं कि इतने घटिया लोगों का पूरी तरह से सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाए ! सबसे ज्यादह आपत्ति तो मुझे इस बात पर है कि रिपोर्टिंग के वक्त ऐसे गुनाहगारों के चहरे क्यों छिपाए जाते हैं ! होना तो यह चाहिये कि जिन लोगों के ऊपर बलात्कार के आरोप सिद्ध हो चुके हैं उनकी तस्वीरें, नाम, पता व सभी डिटेल हर रोज़ टी वी पर और अखबारों में दिखाए जाने चाहिए ताकि ऐसे लोगों से जनता सावधान रह सके ! समाज के आम लोगों के साथ घुलमिल कर रहने का इन्हें मौक़ा नहीं दिया जाना चाहिए ! यदि किरायेदार हैं तो इन्हें तुरंत घर से निकाल बाहर करना चाहिए और यदि मकान मालिक हैं तो ऐसा क़ानून बनाया जाना चाहिए कि इन्हें इनकी जायदाद से बेदखल किया जा सके ! जब तक कड़े और ठोस कदम नहीं उठाये जायेंगे ये मुख्य धारा में सबके बीच छिपे रहेंगे और मौक़ा पाते ही अपने घिनौने इरादों को अंजाम देते रहेंगे ! जब दंड कठोर होगा और परिवार के अन्य सदस्य भी इसकी चपेट में आयेंगे तो घर के लोग भी अपने बच्चों के चालचलन पर निगरानी रखेंगे और लगाम खींच कर रखेंगे ! यदि इन बातों पर ध्यान दिया जाएगा तो आशा कर सकते हैं कि ऐसी घटनाओं की आवृति में निश्चित रूप से कमी आ जाएगी ! 
दामिनी के गुनाहगारों को सज़ा देने में इतनी ढील ना बरती जाती तो शायद ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति इतनी अधिक नहीं होती और कई ‘गुड़ियाएँ’ इस दमन से बच गयी होतीं ! मेरी इच्छा है इस आलेख को सभी लोग पढ़ें और सभी प्रबुद्ध पाठकों का इसे समर्थन मिले ताकि इस दमन चक्र के खिलाफ उठने वाली आवाज़ इतनी बुलंद हो जाये कि नीति नियंताओं की नींद टूटे और वे किसी सार्थक निष्कर्ष पर पहुँच सकें !

साधना वैद

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

निर्भया के साथ हुई दरिंदगी से कम नहीं है यह हैवानियत-नवभारतटाइम्स.कॉम से साभार


rape-delhi
नई दिल्ली ।। पूर्वी दिल्ली के गांधीनगर में रेप के साथ-साथ पाशविक बर्बरता का शिकार हुई 5 साल की बच्ची का मामला देख कर एक बार फिर निर्भया का मामला सबकी आंखों के सामने आ गया। बच्ची का इलाज कर रहे डॉक्टर बता रहे हैं कि उन्होंने ऐसी क्रूरता की घटना नहीं देखी थी।

गौरतलब है कि पांच महीने पहले 16 दिसंबर को दिल्ली में निर्भया के साथ गैंग रेप की भयावह घटना ने पूरे देश को उद्वेलित कर दिया था। उस घटना में रेप के साथ ही आरोपियों ने जिस तरह की निर्दयता दिखाई थी, वह रोंगटे खड़े कर देने वाली थी। उस घटना को 6 महीने भी नहीं हुए हैं और इसी दिल्ली में 5 साल की बच्ची के साथ हुई इस खौफनाक घटना ने एक बार फिर सबको सकते में डाल दिया है।

5 साल की यह मासूम लड़की 14 अप्रैल से गायब थी। उसे उसी बिल्डिंग में ग्राउंड प्लोर में रहने वाले एक युवक ने अपने कमरे में हाथ-पैर बांध कर कैद कर रखा था। उसने बार-बार बच्ची के साथ रेप किया। लगातार पीड़ा से बच्ची बेहोश हो गई थी।
डॉक्टरों के मुताबिक लड़की इस कदर तकलीफ और खौफ से गुजरी है कि वह ठीक से कुछ बता भी नहीं पा रही। उसके पेट के निचले हिस्से से प्लास्टिक की शीशी और मोमबत्ती निकली है। उसका गला काटने की भी कोशिश हुई थी। वह अपने खून से सनी हुई थी। इलाज कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि ऐसी क्रूरता का केस उनके सामने कभी नहीं आया।

उसकी हालत अब भी गंभीर है। डॉक्टर अगले 48 घंटों को उसकी जिन्दगी के लिए बेहद अहम बता रहे हैं।

पुलिस का रवैया भी वैसा ही अमानवीय
निर्भया वाले मामले में पुलिस के रवैये को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए गए थे। इस मामले में भी पुलिस का रवैया वैसा ही लापरवाही भरा और कई मामलों में तो उस घटना से बदतर रहा। न केवल पुलिस चार दिनों तक बच्ची को खोजने का कोई कारगर प्रयास नहीं कर सकी, बल्कि बाद में जब बच्ची मिल गई और उसके साथ हुई अमानवीय हरकत की सामने आ गई तब भी पुलिस ने कथित तौर पर बच्ची के पिता को 2000 रुपए की रिश्वत देते हुए उनसे कहा कि इस घटना का जिक्र मीडिया से न करें।


गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

वो एम्.एल.ए. हो गया !!!-लघु कथा

वो एम्.एल.ए. हो गया !!!-लघु कथा


फेसबुक पर अपने मित्र  का फोटो पहचान कर गुप्ता जी गदगद हो गए .फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी मित्तल जी को  . मित्तल  जी भी अपने दोस्त को पहचान गए और फ्रेंड रिक्वेस्ट कन्फर्म कर दी .और फिर  शुरू  हुआ चैट का सिलसिला .गुप्ता जी ने पूछा -'...और मित्तल वहीँ गाँव में हो या कहीं और ?..मित्तल ने बताया -'' ..अरे यार मैं तो गाँव में ही हूँ पर तू तो कनाडा जाकर हमें भूल ही गया और घर-परिवार ठीक तो है ....सत्रह  साल हो गए तुझे गए ...दुनिया ही बदल गयी .अब तो गाँव भी हाईटेक हो गए हैं ससुरे .'' ..मित्तल की इस बात पर ठहाका लगाते हुए गुप्ता जी ने चैट में लिखा -''...हाँ यार... मैं सपरिवार मौज से हूँ यहाँ ..तू बता तेरे दोनों लड़के क्या कर रहें हैं अब ?बड़ा वाला तो बहुत होशियार था पढ़ाई में ..और वो छोटा ..आवारा ...बदमाश !'गुप्ता जी के प्रश्न पर मित्तल ने उत्तर लिखा -'' गुप्ता बड़े वाले ने परचून की दूकान कर रखी है .एम्.ए.बी.एड. तक पढ़ा पर सरकारी नौकरी के लिए रिश्वत के पैसे कहाँ से लाता ?....और वो छोटा ...वो मज़े से है ..वो एम्.एल.ए. हो गया !!!'

शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

मेरे यू.पी.की बिजली नखरे दिखलाती है !

       




आती है देर से पर छम से जाती है ,
मेरे  यू.पी.की बिजली नखरे दिखलाती है !


इसके बिन रोता पंखा और बल्ब के आंसू बहते ,
टी.वी.-फ्रिज दोनों ही चुप रहकर ज़ुल्म हैं सहते ,

झटके पर झटके देकर बहुत सताती है !
मेरे यू.पी.की बिजली नखरे दिखलाती !



इसकी ये आँख मिचौली दम सबके घोटेगी ,
ये नहीं बताकर जाती अब कब ये लौटेगी ,
इसकी राह तकते-तकते आँखें दुःख जाती हैं !
मेरे यू.पी.की बिजली नखरे दिखलाती है !


इसके न आने पर गुस्सा आ जाता है ,
उतरे घरवालो पर जो पल्ले पड़ जाता है ,
यू.पी.के घर-घर में झगडे करवाती है !
मेरे यू.पी.की बिजली नखरे दिखलाती है !

शिखा कौशिक 'नूतन'






रविवार, 14 अप्रैल 2013

Psychosocial Support and Disasters: THE VOICES OF DISASTER-AFFECTED PEOPLE MUST BE HEA...

Psychosocial Support and Disasters: THE VOICES OF DISASTER-AFFECTED PEOPLE MUST BE HEA...: Re-establishment of the built or natural “place” is more important to disaster-affected people than the areas emphasized by the govern...

''भारतीय नारी '' ब्लॉग प्रतियोगिता -2

''भारतीय नारी '' ब्लॉग प्रतियोगिता -2 


जीवन में किस 'भारतीय नारी ' ने किया है आपको सर्वाधिक प्रभावित ? दो सौ शब्दों की सीमा में लिख दीजिये अपना संस्मरण .यही है -''भारतीय नारी '' ब्लॉग प्रतियोगिता -2 

    नियम व् शर्ते
*अपनी प्रविष्टि  केवल इस इ मेल पर प्रेषित करें [shikhakaushik666@hotmail.com].अन्यत्र प्रेषित प्रविष्टि प्रतियोगिता का हिस्सा न बन सकेंगी .प्रविष्टि  के साथ अपना पूरा पता सही सही भेंजे .
* प्रतियोगिता आयोजक का निर्णय ही अंतिम माना जायेगा .इसे किसी भी रूप में चुनौती नहीं दी जा सकेगी .
*प्रतियोगिता किसी भी समय ,बिना कोई कारण बताये  रद्द की जा सकती है .
* विजेता को '' खामोश  ख़ामोशी और हम ''काव्य संग्रह की एक प्रति पुरस्कार  स्वरुप प्रदान की जाएगी .
*उत्तर भेजने की अंतिम तिथि ३० मई  २०१३ है .
*प्रतियोगिता परिणाम के विषय में अंतिम तिथि के बाद इसी ब्लॉग पर सूचित कर दिया जायेगा .


शिखा कौशिक 'नूतन '

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

मैं पुरुष हूँ !

 Handsome indian man Royalty Free Stock Photos

मैं पुरुष हूँ ,
मैं एक माँ का  बेटा हूँ ,
बहन का भाई हूँ और
बेटी का पिता हूँ !
घर से  कदम जब बाहर निकलते हैं
और देखता हूँ किसी महिला को
उम्र के लिहाज से
मन में भाव जगते हैं !

कार्यस्थल पर जाते समय
बस में चढ़ते हुए जब
देखता हूँ किसी बुजुर्ग महिला की
बेबसी ,हाथ देकर बस में
चढ़ा लेता  हूँ ,
उसमे मुझे मेरी माँ
ही नज़र आती है ,
उसके आशीषों से
मेरी झोली भर जाती है !

कार्यस्थल पर महिला सहकर्मियों
को देखता हूँ लगन से
कार्य करते हुए तो दिखने लगती है
सब में छवि मुझे मेरी बहन की ,
उनकी हँसी में बरसती है
फुहारें सावन की !


कार्यस्थल से लौटते  समय
जब देखता हूँ बस की खिड़की से
पार्क में खेलती बच्चियों को ,
सब में नज़र आती है
मुझे मेरी बिटिया
गुलाब की कली ,
मक्खन की टिकिया ,


किसी स्त्री के साथ छेड़छाड़
करने वाले ,बलात्कार करने वाले ,
जब स्त्री के द्वारा यह कहे जाने पर
''तुम्हारे घर में माँ-बहन नहीं हैं ''
लगाते हैं ठहाका , तब वास्तव  में
भूल जाते हैं कि घर में
माँ-बहन-बेटी
सबके होती है पर
हैवानियत के आगे
लाचार इंसानियत रोती है  !!

शिखा कौशिक 'नूतन'




महिला सशक्तिकरण और मुख्यमंत्री जी -एक राजनैतिक लघु कथा

 महिला सशक्तिकरण और मुख्यमंत्री जी -एक राजनैतिक लघु कथा
Rickshaw : UNIDENTIFIED WOMAN IN DUST STORM. SHOT AT AFTERNOON HOURS ON APRIL 05, 2013 IN PATNA, INDIA.

एक राज्य के मुख्य मंत्री महोदय महिला उद्यमियों के कार्यक्रम में महिला -सशक्तिकरण एवं भ्रूण हत्या  मुद्दों पर बोल रहे थे .पूरे कार्यक्रम का प्रसारण राष्ट्रीय चैनल पर घर-घर प्रसारित किया जा रहा था . दो रिक्शावाले भी टी .वी .की एक दुकान के सामने खड़े होकर उनका मनमोहक भाषण सुनने लगे .मुख्यमंत्री जी धाराप्रवाह बोल रहे थे -' निर्णय  में महिलाओं की भागीदारी से ही बदलेगी देश की तकदीर .'' ऐसी  लुभावनी बातें कर उन्होंने उपस्थित सभी महिला उद्यमियों का दिल जीत लिया .दोनों रिक्शावाले भी उनके महान विचारों से प्रभावित हो ताली बजाने  लगे .तभी एक संभ्रांत महिला उनके पास आकर रुकी . सीधे पल्ले की साड़ी पहने ,  सिर ढके , उस महिला ने एक नज़र टी.वी. पर प्रसारित कार्यक्रम पर डाली और फिर ताली बजाते एक रिक्शावाले से पूछा -'' बेटा सरकारी अस्पताल चलोगे ? रिक्शावाला मुस्कुराकर बोला -''क्यों नहीं माँ जी ! आप आराम से बैठ जाइये .'' ये कहकर  उसने उनका हाथ पकड़कर रिक्शा में चढ़कर बैठने में उनकी मदद की और फिर रिक्शा लेकर चल दिया .रिक्शा जब सरकारी अस्पताल पर पहुंची तब वे संभ्रांत महिला रिक्शावाले की मदद से नीचे उतरी और उसको पैसे देते हुए बोली -''बेटा जिस आदमी के भाषण पर तुम ताली बजा रहे थे और जो महिलाओं की निर्णय में भागीदारी की बात कर रहे थे ...वे मेरे पति हैं जिन्होंने अपनी महत्वाकांक्षाओं  के कारण जीवन भर मेरी उपेक्षा की .कभी ये जानने तक की कोशिश नहीं की  कि मैं जिंदा हूँ या मर गयी .अगली बार जब भी उनके भाषण पर ताली बजाने का मन करे तब एक बार इस बीमार अम्मा को याद कर लेना .'' ये कहकर वे अस्पताल की सीढियाँ चढ़कर अन्दर की ओर चल दी और रिक्शावाले ने अपनी हथेलियों को भींचकर मुठ्ठी बना ली 

         शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

समझौता

लडकियों
तुमको सिर्फ परी कथाये ही
क्यों सुनाई जाती हैं
बचपन से
तुमको सिर्फ गुडिया/ चौके चूल्हे 
का सामान ही मिलता हैं
खिलौनों में
क्यों तुमको राजकुमारी सरीखा कहा जाता हैं
कहानियो में
क्यों सफ़ेद घोड़े पर सवार
राजकुमार आता हैं लेने
सपनो में
जबकि हकीक़त जानती हो तुम
जिन्दगी परी कथा सी नही होती
कोई सफ़ेद घोड़े वाला राजकुमार नही आता
कोई रानी बनाकर नही रखता अपने महल में
जिन्दगी सिर्फ गुडिया जैसे नही होती
समझौता खुद से सबसे पहले करना होता हैं
फिर लोगो के मुताबिक़ ढलना होता हैं
एक अजनबी से रिश्ता जोड़ कर
उनके घर से , परिवार से
रीती-रिवाजों से उनके अपने समाजों से
खुद को जोड़ना होता हैं
इसलिए बचपन से तुमको बहलाया जाता हैं
हाथ में बन्दूक की जगह बेलन पकडाया जाता हैं
भगत सिंह की जगह सिंड्रेला का सपना देखाया जाता हैं ...

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

तेजाबी हमला [हमलावर अब भी हैं फरार ] -कांधला [शामली ]आँठवा दिन

तेजाबी हमला [हमलावर अब भी हैं फरार ] -कांधला [शामली ]आँठवा  दिन 

हमलावर अब भी हैं फरार
दहशत में पीड़ित परिवार
पुलिस के सब तीर बेकार
कब रुकेंगें लड़कियों पर ये तेजाबी वार ?


शिखा कौशिक 'नूतन '


रविवार, 7 अप्रैल 2013

जहरीले चूहे

कमला बाई को सुबह -सुबह दरवाजे पर बुरी हालत में देख रीना का माथा ठनका । एक्सीडेंट के कारण अस्पताल में भर्ती हुई कल ही तो एक हफ्ते बाद वापस लौटी है ,सर पर पट्टी गले की हंसली टूटने पर पीछे हाथ कर बांधी हुई पूरी छाती पर पट्टी, आँखे सूजी हुई देखते ही फफक -फफक कर रो पड़ी कमला रीना के बहुत बार पूछने पर बताया "मेमसाब मेरी पट्टी देखकर मेरे दोसाल के बच्चे ने जो एक हफ्ते से तरस रहा था दूध को मुहँ  भी नहीं लगाया ,शायद मेरे दर्द को महसूस किया उसने पर वो उसके हरामी बाप ने कल !!बीच में फिर फफक कर रो पड़ी कमला कई बार पूछने पर बोली "अपने तीन बेवड़े दोस्तों के साथ  रात भर पीता रहा बोला आज तो बिना सींगों की गाय है तुम भी मजे  !!और मेमसाब रात भर !!इतना कहते- कहते कमला की आँखों में अंगारे दहकने लगे सुनकर रीना सन्न रह गई अवाक निःशब्द !"अब क्या करना है कमला कुछ देर की खामोशी के बाद रीना ने पूछा ,कमला ने अपनी हिचकियें रोकते हुए कहा मेमसाब कुछ पैसे दे दीजिये चूहे मरने की दवाई लानी है सुनते ही रीना अन्दर तक सिहर उठी नहीं कमला क्या करना चाहती हो ये ठीक नहीं है तुम्हारा दो साल का बेटा ,नहीं मेमसाब !कमला बीच में ही बात काटते हुए बोली "कमला इतनी कमजोर भी नहीं वो तो घर में जहरीले चूहे ज्यादा हो गए हैं ,कल तो मेरी आत्मा तक ही काट डाली ,और दो दिन बाद अखबार में खबर छपी की तीन चार लोग जहरीली शराब पीने से अस्पताल में मर गए । 
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ACID ATTACK IN KANDHLA[SHAMLI]

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Justice for Acid Victims in Kandhla Shamli

न्याय के लिए साथ आये



चुप नहीं रहना है अब पुरजोर आज चीख लो ,
साथ अपने लड़कियों तेजाब रखना सीख लो !

 मूक दर्शक बन के ये सारा समाज देखता ,
साथ देंगें ये नपुंसक ? मत दया की भीख लो !

 है नहीं कोई व्यवस्था  छोड़ दो बैसाखियाँ ,
अपनी सुरक्षा करने को मुट्ठियाँ अब भींच लो !

कमजोर हैं नाज़ुक हैं हम इन भ्रमों में मत रहो ,
काली तुम चंडी हो तुम पापी का रक्त चूस लो !

तुम डराओगे हमें ! हम भी डरा सकते तुम्हे ,
आर पार की ये रेखा हौसलों से खींच लो !

शिखा कौशिक 'नूतन'


THIS WAS THE FIRST ACID ATTACK IN KANDHLA [SHAMLI] ON GIRLS .ON 2ND APRIL 2013 FOUR SISTERS WERE RETURNING TO THEIR HOME AFTER A COLLEGE EXAM DUTY .TWO OR THREE BOYS HAVE THROWN ACID ON THEM .ONE SISTER WAS SERIOUSLY INJURED IN THIS ATTACK .SHE HAS BEEN ADMITTED IN SR.GANGA RAM HOSPITAL IN DELHI . AT THE SPOT SISTERS TRIED THEIR BEST TO CATCH THEM BUT THE CONVICTS GOT OFF .THE CONVICTS ARE STILL AT LARGE . THIS IS REALLY FRUSTRATING .LET US WAIT AND WATCH HOW WILL POLICE DEAL WITH THE ROGUES ? BUT ONE THING IS CLEAR WE OPPOSE THIS ATTACK  WITH ALL FORCE .
    JAY HIND
DR.SHIKHA KAUSHIK

सोमवार, 1 अप्रैल 2013

बहक न जाये औरत सुनकर बगावतों की खबर

 बहक न जाये औरत सुनकर बगावतों की खबर
 Portrait of young beautiful happy indian bride with bright makeup and golden jewelry - stock photoClose-up portrait of the female face in blue sari. Vertical photo - stock photo

सजा औरत को देने में मज़ा  है  तेरा  ,
क़हर ढहाना, ज़फा करना जूनून है तेरा !

दर्द औरत का बयां हो न जाये चेहरे से ,
ढक दिया जाता है नकाब से  चेहरा  !

बहक न जाये औरत सुनकर बगावतों की खबर ,
उसे बचपन से बनाया जाता है बहरा !

करे न पार औरत हरगिज़ हया की चौखट ,
उम्रभर देता है मुस्तैद होकर मर्द पहरा !

मर्द की दुनिया में औरत होना है गुनाह ,
ज़ुल्म का सिलसिला आज तक नहीं ठहरा !