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शनिवार, 20 जून 2015

वीरोगति रूप मृत्यु का कहलाता सुन्दरतम !


घाव  लगें जितनें भी तन पर कहलाते आभूषण ,
वीर का लक्ष्य  करो शीघ्र ही शत्रु -दल  का मर्दन ,
अडिग -अटल हो करते रहते युद्ध -धर्म का पालन ,
समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन !
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युद्ध सदा लड़ते हैं योद्धा बुद्धि -बाहु  बल से ,
कापुरुषों की भाँति न लड़ते हैं माया -छल से ,
शीश कटे तो कटे किन्तु पल भर को न झुकता है ,
आज अभी लेते निर्णय क्या करना उनको कल से !
राम-वाण के आगे कैसे टिक सकता है रावण ?
समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन !
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सिया -हरण का पाप करे जब रावण इस धरती पर ,
सज्जन ,साधु ,संत सभी रह जाते हैं पछताकर ,
उस क्षण योद्धा लेता प्रण अपने हाथ उठाकर ,
फन कुचलूँगा हर पापी का कहता वक्ष फुलाकर ,
सुन ललकार राम की हिलता लंका का सिंहासन !
समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन !
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गर्जन-तर्जन मार-काट मचता है हा-हा कार ,
कटती गर्दन -हस्त कटें बहती रक्त की धार ,
रणभूमि का करते योद्धा ऐसे ही श्रृंगार ,
गिर-गिर उठकर पुनः-पुनः करते हैं वार-प्रहार ,
वीरोगति रूप मृत्यु का कहलाता सुन्दरतम !
समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन !

शिखा कौशिक 'नूतन'

सोमवार, 8 जून 2015

सबसे सुन्दर प्रिया !

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गुलाबी फूल

हरी बेल पर

अत्याधिक आकर्षक !

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 ओस की बूँदें

हरे पत्तों पर

अत्याधिक मोहक !

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 जल की फुहार

चमकती हुई धूप में

अत्याधिक उज्ज्वल !

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 लेकिन सबसे सुन्दर

तुम हो प्रिया

गाम्भीर्य लिए चंचल !

 शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 2 जून 2015

मैं नहीं लिखता कोई मुझसे लिखाता है !

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मैं नहीं लिखता ; कोई मुझसे लिखाता है !

कौन है जो भाव बन ; उर में समाता है ! .

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कौंध जाती बुद्धि- नभ में विचार -श्रृंखला दामिनी ,

तब रची जाती है कोई रम्य-रचना कामिनी ,

प्रेरणा बन कर कोई ये सब कराता है !

मैं नहीं लिखता ; कोई मुझसे लिखता है !

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जब कलम धागा बनी ; शब्द-मोती को पिरोती ,

कैसे भाव व्यक्त हो ? स्वयं ही शब्द छाँट लेती ,

कौन है जो शब्दाहार यूँ बनाता है ?

मैं नहीं लिखता कोई मुझसे लिखाता है !

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सन्देश-प्रेषित कर रहा वो अदृश्य कौन ?

हम अबोध क्या कहें ! जब वो स्वयं है मौन !

वो कवि से काव्य अनुपम रचाता है !

मैं नहीं लिखता कोई मुझसे लिखाता है !

 शिखा कौशिक 'नूतन'