मेरा दृढ विश्वास है कि केवल आम आदमी ही वास्तव में कोई परिवर्तन ला सकता है क्योंकि -
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शोषणों की आग जब रक्त को उबालती ,
शंख लेकर हाथ में वो फूंक देता क्रांति ,
उसको साधारण समझना है भयानक भ्रान्ति ,
वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !
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हम सामान्य -जन समक्ष श्री राम का आदर्श है ,
एक वनवासी कुचलता लंकेश का महादर्प है ,
''सत्य की है जय अटल '' इसका यही निष्कर्ष है ,
क्रांति -पथ पर वीर बढ़ता सोच ये सहर्ष है ,
थाम देता है गति अधर्म के तूफ़ान की !
वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !
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कंस-वध जिसने किया भोला सा ग्वाला श्याम है ,
आतंक-अन्याय मिटाकर बन गया भगवान है ,
कोटि-कोटि राम-श्याम हममें विद्यमान हैं ,
उत्सर्ग करने को सदा प्रस्तुत हमारे प्राण हैं ,
जन-जन की शक्ति एक होकर विश्व को संवारती !
वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !
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साबरमती के संत को भूल सकता कौन है ?
मानव बने महात्मा विस्मित त्रिलोक मौन है ,
बांध दिया जनता को एकता की डोर से ,
मिटा दिया था भेद कौन मुख्य कौन गौण है ,
है अमर ''बापू'' हमारा धड़कनें पुकारती !
वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !
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हमको आशाएं बंधाकर , सत्ता का जो करते वरण ,
हम मौन होकर देखते जन-सेवकों का आचरण ,
हैं अगर सन्मार्ग पर , जन-जन करे अनुसरण ,
पथभ्रष्ट उनको देख हम करते अनशन आमरण ,
जनता बिठाती गद्दी पर जनता ही उतारती !
वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !
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आरोप-प्रत्यारोप तो नेताओं के ही काम हैं ,
आम-जन का लक्ष्य तो समस्या-समाधान है ,
छल-कपट से कर भी ले कोई छली सत्ता-हरण ,
धरना-प्रदर्शन का हम रखते राम-बाण हैं ,
ठान लें तो हम पलट दें हर दिशा ब्रह्माण्ड की !
वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !
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शिखा कौशिक 'नूतन
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शोषणों की आग जब रक्त को उबालती ,
शंख लेकर हाथ में वो फूंक देता क्रांति ,
उसको साधारण समझना है भयानक भ्रान्ति ,
वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !
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हम सामान्य -जन समक्ष श्री राम का आदर्श है ,
एक वनवासी कुचलता लंकेश का महादर्प है ,
''सत्य की है जय अटल '' इसका यही निष्कर्ष है ,
क्रांति -पथ पर वीर बढ़ता सोच ये सहर्ष है ,
थाम देता है गति अधर्म के तूफ़ान की !
वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !
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कंस-वध जिसने किया भोला सा ग्वाला श्याम है ,
आतंक-अन्याय मिटाकर बन गया भगवान है ,
कोटि-कोटि राम-श्याम हममें विद्यमान हैं ,
उत्सर्ग करने को सदा प्रस्तुत हमारे प्राण हैं ,
जन-जन की शक्ति एक होकर विश्व को संवारती !
वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !
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साबरमती के संत को भूल सकता कौन है ?
मानव बने महात्मा विस्मित त्रिलोक मौन है ,
बांध दिया जनता को एकता की डोर से ,
मिटा दिया था भेद कौन मुख्य कौन गौण है ,
है अमर ''बापू'' हमारा धड़कनें पुकारती !
वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !
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हमको आशाएं बंधाकर , सत्ता का जो करते वरण ,
हम मौन होकर देखते जन-सेवकों का आचरण ,
हैं अगर सन्मार्ग पर , जन-जन करे अनुसरण ,
पथभ्रष्ट उनको देख हम करते अनशन आमरण ,
जनता बिठाती गद्दी पर जनता ही उतारती !
वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !
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आरोप-प्रत्यारोप तो नेताओं के ही काम हैं ,
आम-जन का लक्ष्य तो समस्या-समाधान है ,
छल-कपट से कर भी ले कोई छली सत्ता-हरण ,
धरना-प्रदर्शन का हम रखते राम-बाण हैं ,
ठान लें तो हम पलट दें हर दिशा ब्रह्माण्ड की !
वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !
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शिखा कौशिक 'नूतन
4 टिप्पणियां:
शोषणों की आग जब रक्त को उबालती ,
शंख लेकर हाथ में वो फूंक देता क्रांति ,
उसको साधारण समझना है भयानक भ्रान्ति ,
वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !
सत्य को सुन्दर शब्दों से अभिव्यक्त किया है आपने .आभार
सही कहा है जनता की शक्ति कम नहीं है
अति उत्तम रचना !
आरोप-प्रत्यारोप तो नेताओं के ही काम हैं ,
आम-जन का लक्ष्य तो समस्या-समाधान है ,
छल-कपट से कर भी ले कोई छली सत्ता-हरण ,
धरना-प्रदर्शन का हम रखते राम-बाण हैं ,
ठान लें तो हम पलट दें हर दिशा ब्रह्माण्ड की !
वो भरे हुंकार तो वसुधा भी थर-थर कांपती !
बहुत सशक्त लेखन.
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