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सोमवार, 12 नवंबर 2012

Vasiyat

मेरी जागीर हैं मेरे बच्चे 
जिनको मैंने इन हाथो से पाला हैं 
तन की वसीयत खुदा के नाम की 
धन की वसीयत मेरे हाथ मैं नही 
मन के सारे कोने झाड़ -पौंछ कर 
मैंने एक पोटली भर ली
मेरे बच्चो इस दीवाली
मैंने भी अपनी वसीयत लिख ली
मेरी हर फटकार को तुम
जींवन का सबक समझोगे
मेरी हर ना ने तुमको
जीवन मूल्य बताये होंगे
मेरे हर दुलार ने तुमको
प्यार सीखाया होगा
मेरी सख्ती ने तुमको
कमजोर होने से बचाया होगा
जिन्दगी का क्या भरोसा
आज हैं कल हो न हो
या बरसो तक हो
छोटे छोटे पल को जीना
खुशियों मैं भी खुशिया जीना
इस वसीयत का मूल मंत्र हो ............................. नीलिमा

रविवार, 11 नवंबर 2012

होंठो से रिसता खून 
सूनी आँखे 
लहराती सी चाल 
बिखरे से बंधे बाल 

बनीता 
आँगन लीप रही हैं 


आज धनतेरस हैं
किसनू लोहे की
करछी खरीद लाया हैं
शगुन के लिए


आते ही उसे
घर की लक्ष्मी पर
अजमाया हैं

बनिता की माँ ने
पहली दीवाली का
शगुन
नही भिजवाया हैं . Neelima Sharma

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

संस्कार किताबो के मोहताज नही होते

रमती  परेशान थी 
 इकलोती पाचवी पास 
औरत  थी मोहल्ले की 
 और पति उज्जड गवार 
 रात शराब के नशे मैं 
 उसने बक्की  थी उसको
माँ- बहन की गालियाँ
    . मर क्यों न गयी रमती
 शरम से 
.
.
 रमती आज मुस्करा रही हैं 
 सामने पीली कोठी वाली  
बाल कटी   मेमसाहेब
 कल रात सड़क पर 
 पति के हाथो पीटी हैं 
 माँ- बहन की गालियों  के साथ  
.
  संस्कार किताबो के मोहताज नही होते 
 रमती हँस  रही हैं किताबो पर 
 अपने पर   
 पीली कोठी  की अभिजत्यता पर 

 खुद पर हँस ना बनता हैं उसका ...............  नीलिमा