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मंगलवार, 21 जनवरी 2014

क्षण है बंधु वीरोचित ये संघर्ष प्रलय का !


प्रश्न इस समय नहीं पराजय -जय का ,
नहीं हास व् नहीं शोक का न ही मृत्यु -भय का ,
सतत चुनौती को स्वीकारे ऐसे वज्र ह्रदय का ,
क्षण है बंधु वीरोचित ये संघर्ष प्रलय का !
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शत्रु-दल की नींव हिला दे हम वीरों का गर्जन ,
बाहु-बुद्धि-बल से करना शत्रु का है मर्दन ,
निज उर में उत्साह की लहरें करती क्षण-क्षण नर्तन ,
नहीं हटेगा एक पग पीछे कट जानें दो गर्दन !
प्राण-आहूति देते जाना लक्ष्य आज सभी का !
क्षण है बंधु वीरोचित ये संघर्ष प्रलय का !
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नहीं झुकेगा शीश हमारा कट कर भले गिरेगा ,
वीर कभी घुटने न टेके लड़ते हुए मरेगा ,
वक्षस्थल पर आगे बढ़कर शत्रु-वार सहेगा ,
रक्त बहाकर रण-भूमि की सूनी माँग भरेगा !
नव -घावों से और उबलता अर्णव इनके बल का !
क्षण है बंधु वीरोचित ये संघर्ष प्रलय का !
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प्रबल मनोबल इनका मानों जल है आग-पवन है ,
नहीं काटने से कट पाता शक्तिमान सबल है ,
क्या होगा परिणाम नहीं चिंतित वीरों का मन है ,
करना रण-कौशल का उनको क्षण क्षण प्रदर्शन है !
जय-पराजय नहीं सदा संघर्ष मूल जीवन का !
क्षण है बंधु वीरोचित ये संघर्ष प्रलय का !
शिखा कौशिक 'नूतन'

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