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सोमवार, 14 दिसंबर 2015

'वो' भयभीत नहीं होने देता '


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बसा हुआ हर उर में है 'वो' ;
भयभीत नहीं होने देता ,
विषम घड़ी में भी शत्रु की
जीत नहीं होने देता !
......................................
रुको नहीं बढ़ते जाओ ;
चीर अंधेरों के चीरो ,
बलिदानों की झड़ी लगा दो ,
किंचित नहीं झुको वीरों ,
वीर-प्रसूता के मस्तक को
लज्जित न होने देता !
विषम घड़ी में भी शत्रु की
जीत नहीं होने देता !
......................................
घोर निराशा जब बंधन में ;
बांध रही हो जीवन को ,
हीन-भावना जकड रही हो
मानव के अंतर्मन को ,
आशाओं के दीप जगा
तम विजित नहीं होने देता !
विषम घड़ी में भी शत्रु की
जीत नहीं होने देता !
......................................
मृत्यु से भी आँख मिला लो ;
भर देता हम में साहस ,
मिटटी को भी स्वर्ण बना दे ;
ऐसा वो निर्मल पारस ,
मर्यादित को धर्म-मार्ग से
विचलित न होने देता !
 विषम घड़ी में भी शत्रु की
जीत नहीं होने देता !


डॉ. शिखा कौशिक

3 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर ..

kavita verma ने कहा…

badiya rachna

Admin ने कहा…

हर पंक्ति हौसले से भरी है और दिल को मजबूत कर देती है। सबसे खास बात ये है कि ये हमें याद दिलाती है कि मुश्किल वक्त में हार मानना सही रास्ता नहीं है। अंधेरों को चीरकर आगे बढ़ना ही असली वीरता है। मुझे बहुत अच्छा लगा कि इसमें बलिदान, साहस और धर्म के मार्ग की बात इतनी साफ और सटीक ढंग से लिखी है।