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शनिवार, 28 दिसंबर 2013

नई शुरुआत

अरे विमला ! ये क्या लगा रखा है ? पुरे दिन बस लिखती रहती हो,जैसे कोई बहुत बड़ी लेखिका बन जाने वाली हो.....सास ने जोर से चिल्लाकर कहा|
           विमला के पति गोविन्द ने ये सब सुना ,झट से आकर उसने विमला के कागज फाड़ दिए जिसमे वो  कहानी लिख रही थी| और जोर से चिल्ला कर कहा ''जब ये कागज ही नहीं रहेगे तो तो कहाँ से ये कुछ कर सकेगी|,विमला के कितने दिनों की मेहनत थे, ये कागज,जिसे गोविन्द ने एक पल मे खत्म कर दिया | उसे एक मौका मिला था,एक बड़े समाचार-पत्र के साप्ताहिक प्रष्ठ मे बड़ी कहानी भेजने का ,जिसे वो लोग मंगल वार को छापने वाले थे |
          उसने पूरी कहानी लगभग लिख ली थी | आज गोविन्द ने फाड़ डाली | ऐसा नहीं था कि झगड़ा आज ही हुआ है | विमला के लिखने को लेकर झगड़ा तो रोज ही होता था | पर आज गोविन्द ने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया |
            विमला रोज ही सारे घर का काम खत्म करके,अपने बेटे को स्कूल भेज कर ही अपने कलम के साथ बैठती थी| फिर भी घर वालो को उसका लिखना अखरता था| उनके हिसाब से घर की बहु को ऐसा कुछ करना ही नहीं चाहिए ! बहु को तो केवल ससुराल वालो की सेवा करना और उनकी मर्जी के मुताबिक चलना चाहिए| पर बहु को भी अपने तरीके से जीवन जीने का हक होना चाहिए| हर पढ़ी -लिखी बहु को अपने कर्तव्य-पालन और मर्यादा निभाने के साथ अपना जीवन अपने तरीके के साथ जीने का हक भी होना चाहिए |
             विमला रोज तो ससुराल वालो का गुस्सा सहन कर लेती थी ,पर आज तो उसका गुस्सा भी फूट पड़ा| उसने भी कमरे मे जाकर गोविन्द के ऑफिस के जरुरी कागजात फाड़ डाले| विमला के इस पलटवार से गोविन्द हक्का-बक्का रह गया! वो तो कभी सोच भी नहीं सकता कि विमला ऐसा कुछ उसके साथ कर सकती है | वो सच मे डर गया गुस्से से घर से बाहर चला गया|
            सास भी सोचने को मजबूर हो गयी, चुप-चाप अपने कमरे मे चली गयी| विमला ने सोचा मैइतने वक्त से चुप थी,इनकी सारी बाते सहन करती थी,इसलिए इनकी हिम्मत बढती ही गयी| और जब मे कुछ गलत नहीं कर रही हूँ तो फिर क्यों डरूं ? क्या मुझे अपने तरीके से जीने का, कुछ करने का हक नहीं है इस घर मे ? सोचते सोचते ना जाने कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला |
             शाम को गोविन्द घर आया तब भी विमला गुस्से मे थी| गोविन्द अपनी माँ के कमरे मे गया| थोड़ी देर बाद दोनों माँ -बेटे वापस बाहर आये और विमला को कहा ''विमला हमसे गलती हो गयी है तुम्हारी कला का हमने अपमान किया,पर आज से तुम अपनी कहानियाँ लिख सकती हो | हमे अपनी गलती का अहसास आज तुमने ना कराया होता तो......|,विमला ने कोई जवाब नहीं दिया| अपने कमरे मे जाकर कमरा बंद किया और कहानी की वापस शुरूआत की.....शायद जीवन की कहानी की भी आज से नहीं शुरुआत की उसने .....
 शांति पुरोहित
           
              अरे विमला ! ये क्या लगा रखा है ? पुरे दिन बस लिखती रहती हो,जैसे कोई बहुत बड़ी लेखिका बन जाने वाली हो.....सास ने जोर से चिल्लाकर कहा|
           विमला के पति गोविन्द ने ये सब सुना ,झट से आकर उसने विमला के कागज फाड़ दिए जिसमे वो  कहानी लिख रही थी| और जोर से चिल्ला कर कहा ''जब ये कागज ही नहीं रहेगे तो तो कहाँ से ये कुछ कर सकेगी|,विमला के कितने दिनों की मेहनत थे, ये कागज,जिसे गोविन्द ने एक पल मे खत्म कर दिया | उसे एक मौका मिला था,एक बड़े समाचार-पत्र के साप्ताहिक प्रष्ठ मे बड़ी कहानी भेजने का ,जिसे वो लोग मंगल वार को छापने वाले थे |
          उसने पूरी कहानी लगभग लिख ली थी | आज गोविन्द ने फाड़ डाली | ऐसा नहीं था कि झगड़ा आज ही हुआ है | विमला के लिखने को लेकर झगड़ा तो रोज ही होता था | पर आज गोविन्द ने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया |
            विमला रोज ही सारे घर का काम खत्म करके,अपने बेटे को स्कूल भेज कर ही अपने कलम के साथ बैठती थी| फिर भी घर वालो को उसका लिखना अखरता था| उनके हिसाब से घर की बहु को ऐसा कुछ करना ही नहीं चाहिए ! बहु को तो केवल ससुराल वालो की सेवा करना और उनकी मर्जी के मुताबिक चलना चाहिए| पर बहु को भी अपने तरीके से जीवन जीने का हक होना चाहिए| हर पढ़ी -लिखी बहु को अपने कर्तव्य-पालन और मर्यादा निभाने के साथ अपना जीवन अपने तरीके के साथ जीने का हक भी होना चाहिए |
             विमला रोज तो ससुराल वालो का गुस्सा सहन कर लेती थी ,पर आज तो उसका गुस्सा भी फूट पड़ा| उसने भी कमरे मे जाकर गोविन्द के ऑफिस के जरुरी कागजात फाड़ डाले| विमला के इस पलटवार से गोविन्द हक्का-बक्का रह गया! वो तो कभी सोच भी नहीं सकता कि विमला ऐसा कुछ उसके साथ कर सकती है | वो सच मे डर गया गुस्से से घर से बाहर चला गया|
            सास भी सोचने को मजबूर हो गयी, चुप-चाप अपने कमरे मे चली गयी| विमला ने सोचा मैइतने वक्त से चुप थी,इनकी सारी बाते सहन करती थी,इसलिए इनकी हिम्मत बढती ही गयी| और जब मे कुछ गलत नहीं कर रही हूँ तो फिर क्यों डरूं ? क्या मुझे अपने तरीके से जीने का, कुछ करने का हक नहीं है इस घर मे ? सोचते सोचते ना जाने कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला |
             शाम को गोविन्द घर आया तब भी विमला गुस्से मे थी| गोविन्द अपनी माँ के कमरे मे गया| थोड़ी देर बाद दोनों माँ -बेटे वापस बाहर आये और विमला को कहा ''विमला हमसे गलती हो गयी है तुम्हारी कला का हमने अपमान किया,पर आज से तुम अपनी कहानियाँ लिख सकती हो | हमे अपनी गलती का अहसास आज तुमने ना कराया होता तो......|,विमला ने कोई जवाब नहीं दिया| अपने कमरे मे जाकर कमरा बंद किया और कहानी की वापस शुरूआत की.....शायद जीवन की कहानी की भी आज से नहीं शुरुआत की उसने .....
 शांति पुरोहित
           
              

4 टिप्‍पणियां:

Roshi ने कहा…

जैसे को तेसा.....बहुत सुंदर

बेनामी ने कहा…

sarthak sandsh preshit karti kahani .aabhar

Unknown ने कहा…

रोशी आपका शुक्रिया

Unknown ने कहा…

शिखा जी आपका शुक्रिया