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शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !


साकेत खंडर हो रहा लंका का नव श्रृंगार है ,
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
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लक्ष्मण -भरत सम भ्रात न सीता के सम हैं भार्या ,
मर्यादी अब पुरुष नहीं न शीलमयी नारियां ,
आनंद जीवन में नहीं हर ओर हाहाकार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
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क्रोध ,लोभ ,माया-मोह संयम पे हावी हो गए ,
भरी तिजोरी पाप की पुण्य भिखारी भये ,
झूठ के समक्ष सत्य की सर्वत्र हार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
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हैं कहाँ गुरु वशिष्ठ जो भरते संस्कार ,
हो रहे विद्यालयों में भी आज दुराचार ,
सदाचरण क्षत -विक्षत मन में चीत्कार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
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दंड देगा कौन राजा बन गए खुद चोर हैं ,
लूटकर सबको मचाता खुद लुटेरा शोर है ,
है कोई भोला कहाँ हर कोई अब मक्कार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !
शिखा कौशिक 'नूतन'

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

very right and nice .

रविकर ने कहा…

nice

virendra sharma ने कहा…

क्रोध ,लोभ ,माया-मोह संयम पे हावी हो गए
भरी तिजोरी पाप की पुण्य भिखारी भये ,
झूठ के समक्ष सत्य की सर्वत्र हार है !
श्री राम को वनवास व् रावण की जय जयकार है !

तमो प्रधान कलियुग का मतलब समझा गई ये रचना। बधाई सशक्त लेखन को।

तुलसी के पत्ते सूखे हैं और कैक्टस आज हरे हैं ,

आज राम को भूख लगी है रावण के भण्डार भरे हैं।

कोयला खाता आज आदमी चरागाह सब मरे पड़े हैं ,

सेकुलर चीं चीं चों चों करते भारत धर्मी अलग पड़े हैं।

बेनामी ने कहा…

aap sabhi ka hardik aabhar

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुर सुन्दर प्रस्तुति
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