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शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

परिवर्तन                           शांति पुरोहित की कहानी
   प्रतीक का आज छ सालो बाद दुबई से अपने देश भारत आने का हुआ था | वहां जाकर तो जैसे वो बदल ही गया था | जब प्रतीक दुबई गया तब तो पूरा देहाती था,और अब लौटा है तो पूरा विदेशी बन कर | प्रतीक ने फाइनेंस मे ऍम.बी.ए.किया था | वहां जाकर उसे एक प्राइवेट कंपनी मे जॉब मिल गयी,पर वो मेहनत भी बहुत करता था तब जाकर उसने इतने पैसे कमाए है |
                                उसने वहां जाकर अपने घर पर जो पैसा भेजा उन पैसो से उसके पापा ने एक छोटी सी स्कूल खोल ली थी,जिसमे उसकी माँ और बहन पढ़ाती और पापा वस्थापक थे | अब उसके माँ -पापा और बहन सुख से अपना जीवन बसर कर रहे थे, और खुश थे | प्रतीकएयर बस मे बैठा सोच रहा है, कि उसका दुबई जाना कितने मुश्किल हालत मे हुआ था| कम्पनी से ऑफर लैटर एक माह पहले ही आ गया था पर वो जाने का तय ही नहीं कर पा रहा था,यहाँ तक प्रतीक ने एजेंट से अपना पासपोर्ट, वीसा और सब कागजी कार्यवाही पूरी करवा ली थी | बस हाँ भरने की देरी थी | दरअसल विदेश जाने मे प्रतीक को डर लग रहा था |
                                प्रतीक एयरपोर्ट पर उतर चूका था वहां से उसके गाँव पहुँचने का छ घंटे का रास्ता था | उसे गाड़ी मे बैठते ही सब पुरानी बाते याद आने लगी | प्रतीक जब जाने का तय नहीं कर पाया तो उसकी छोटी बहन ने कहा था कि''भाई तुम्हारे एक के जाने से तुम्हारी और हम तीनो की जिंदगी संवर जायेगी, बस पांच साल मेहनत कर लो, फिर हम सब साथ -साथ रहेंगे यहीं पर | और तब उसे अपनी बहन की बात सही लगी और प्रतीक का जाना तय हो गया |
                               उस वक़्त प्रतीक एयरपोर्ट की केन्टीन मे बैठा नाश्ता कर रहा था, पास ही की टेबल पर एक जानी पहचानी सूरत दिखाई दी,उसे लगा कि इसे कहीं देखा है,तभी उसे याद आया कि अरे ! ये तो हमारे ही गाँव का गुंडा है,जिसे सब सेठी भाई कहते है प्रतीक एक मिनिट के लिये उससे डर गया कि कंही ये उसे ही ना लुट ले | तभी उसे याद आया कि दुबई जाने की एक रात पहले गाँव मे हल्ला मचा था कि सेठी गुंडा गाँव के ही रामू चाचा की बेटी सरिता को भगा कर ले गया | रामू चाचा की गिनती धनाड्य लोगो मे होती थी | रामू चाचा के घर की सारे गहने भी गुम थे और सरिता भी गायब थी | उस वक्त प्रतीक इतना व्यस्त था वो सरिता के लिये कुछ नहीं कर पाया | लेकिन विदेश से उसने अपने पापा से कई बार पूछा कि सरिता का कुछ पता चला क्या ? और  वो सेठी कभी गाँव वापस आया क्या ?
                              प्रतीक को अब तक पक्का याद आ गया कि ये, वो ही गुंडा है | वो सोचने लगा कि इसने गहने ले कर सरिता को कंही बेच दिया होगा या छोड़ दिया होगा | सेठी से बात करने की हिम्मत जुटा कर वो उसके पास गया और कहा''आपका नाम सेठी,भाई है ना?,सेठी ने प्रतीक के सामने देखा | तभी उसके साथ बैठे दो व्यक्तियों ने कहा ''भैया , आपको कोई गल्तफहमी हो रही है ये सेठी नहीं असीम भाई है |, अब उस गुंडे से सच तो बुलवाना था,गाँव की बेटी के बारे मे पता जो लगाना था तो प्रतीक ने कहा''मै दो मिनिट आपसे अकेले मे बात कर सकता हूँ ? थोड़ी ना -नुकर के बाद वो बोला ''ठीक है चलो, वो दोनों एक टेबल के पास जाकर बैठ गये |
                         ''आप हमारे गाँव के सेठी भाई ही हो ना, जो सरिता को भगा कर ले गया और साथ मे घर के सारे गहने भी ले भागा ? वो सकपकाया कुछ नहीं बोला तो प्रतीक ने पुलिस का डर दिखाया अब'' मरता क्या ना करता, उसने कहा ''हां मै ही हूँ सेठी,प्रतीक ने झट से पूछा ''सरिता कहाँ है,उसने फिर कोई जवाब नहीं दिया मुझे लगता है आपने उसे  कंही बेच दिया होगा,प्रतीक ने कहा | ''नहीं आप चलो मेरे साथ|, वैसे तो प्रतीक को घर जाने की जल्दी थी पर गाँव की बेटी के बारे मे जानना भी जरुरी था तो चल दिया उसके साथ |
                              वो दोनों अब एक बस्ती मे एक घर के सामने थे,सेठी ने प्रतीक को कहा ''चलिए, प्रतीक ने घर के अन्दर देखा सरिता पलंग पर लेटी हुई थी,सरिता ने प्रतीक को नहीं पहचाना पर उसने पूछा 'तुम ठीक हो ना?, इस सेठी ने तुम्हे परेशांन तो नहीं किया ना ?, नहीं भैया बिलकुल नहीं,बल्कि इन्होंने ही मुझे संभाला है,मे दो साल से बीमार हूँ ,मेरा एक दो साल का बेटा भी है उसे भी ये ही सँभालते है | हम दोनों अपनी मर्जी से भागे थे | ये तो इनका नाम पहले से ही बदनाम था तो लोगो का शक इन पर जाना ही था | हम दोनों मे प्यार था और इन्होंने मुझे कहा था कि अगर मै इनसे शादी करती हूँ तो ये सारे बुरे काम छोड़ कर एक आम आदमी की तरह जियेगेt तो मैंने इनसे शादी करने का फैसला किया और हां भैया ,वो गहने भी इन्होंने नहीं चुराए मैंने ही साथ लिये थे, की कहीं खाने को नहीं मिलेगा तो ये गहने काम आयेगे | आज भी गहने मेरे पास पड़े है| इन्होंने हाथ भी नहीं लगाया कभी गहनों को ||
                    भैया इन्होंने सारे बुरे काम छोड़ भी दिए हम खुश है प्रतीक को ये सब सरिता के मुहं से सुन कर बहुत ख़ुशी हुई | वो सोचने लगा कि एक  स्त्री का प्यार पाकर इन्सान इतना बदल सकता है | अब उसने सरिता से पूछा कि तुम लोग कभी गाँव गये ''सरिता ने कहा नहीं भैया डर के मारे नहीं गये,प्रतीक ने कहा मेरे साथ चलो ,सरिता ने ना कहा पर प्रतीक जिद पकड़ कर बैठ गया तो जाना पड़ा |
                           अब सरिता और सेठी को गाँव मे देख कर गाँव वाले और सरिता के माँ -पापा प्रतीक पर  बहुत नाराज हुए पर जब प्रतीक ने सब कुछ बताया तो सब ने उन्हें माफ़ कर दिया |अब सरिता की माँ ने सेठी से कहा अब आप हमारे दामाद हो | सरिता को थोड़े दिन हमें सँभालने दो, आप अपने काम पर ध्यान दो जो सरिता की बीमारी के कारण बंद पड़ा है |
                  प्रतीक को ये देख कर ख़ुशी हो रही है, कि सरिता के माँ -पापा को आज कितने सालो बाद सुख मिला है | प्रतीक को अच्छा लग रहा था कि उसने गाँव मे आते ही अच्छा काम किया | ये सब जान कर उसके माँ -पापा और बहन भी खुश थे|
                   
                            शांति पुरोहित 

2 टिप्‍पणियां:

Durga prasad mathur ने कहा…

आदरणीया, यह सही है कि एक स्त्री का प्यार पाकर बुरे से बुरा इंसान भी बदल जाता है इसके अनेकों उदाहरण हमारे इतिहास में भी हैं क्योकि नारी शक्ति स्वरूपा होती है। आपको एक अच्छी कहानी के लिए बधाई ।

Unknown ने कहा…

दुर्गा प्रसाद माथुर जी हौंसला बढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद