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गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

रावण का प्रायश्चित


श्री राम का वाण लगा जाकर ,

नाभि का अमृत गया सूख ,

फिर कटे दश-आनन् एक एक कर ,

गिरा राम चरण में दम्भी -मूर्ख !

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अंतिम श्वासें भरता-भरता

करता प्रायश्चित बोला रावण ,

श्री राम किया उपकार बड़ा ,

मैं हाथ जोड़ता इस कारण !

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वध आज हुआ पर हे भगवन !

मृत उस दिन से है मेरा मन ,

जब पंचवटी से हर लाया ,

जगजननी माँ सीता पावन !

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ये तन तो आज मैं त्यागूंगा ,

करता रहा जिससे पाप कर्म ,

पर यश फैले सीता माँ का ,

जो रही निभाती पत्नी-धर्म !

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मेरे वैभव ,शक्ति-बल से

विचलित न हुई किसी भी क्षण ,

उन सीता माँ का उर से मैं ,

करता हूँ शत-शत अभिनन्दन !

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श्री राम आप हैं परमपिता ,

इस दम्भी पुत्र पर दया करें ,

चिर संग आपके रहें सिया ,

मुझ पापी को अब क्षमा करें !

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श्री राम-सिया की युगल छवि ,

मेरे प्राणों में बसी रहे ,

युग-युग तक जब भी जन्म मिले

जिह्वा सियाराम सियाराम कहे !

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ये कहते कहते रावण ने ,

उस कलुषित देह को दिया त्याग ,

सब पाप कटे ; धुला काम-मैल ,

सियाराम का है अनुपम प्रताप !



शिखा कौशिक 'नूतन'

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