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गुरुवार, 29 नवंबर 2012

हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

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                          शिखा कौशिक 'नूतन '
                                    



सोमवार, 26 नवंबर 2012

-आत्मशक्ति पर विश्वास


['' खामोश ख़ामोशी और हम '' काव्य संग्रह में प्रकाशित मेरी रचना ]
जीवन एक ऐसी पहेली है जिसके बारे में बात करना वे लोग ज्यादा पसंद करते हैं जिन्होंने कदम-कदम पर सफलता पाई हो.उनके पास बताने लायक काफी कुछ होता है. सामान्य व्यक्ति को तो असफलता का ही सामना करना पड़ता है.हम जैसे साधारण मनुष्यों की अनेक आकांक्षाय होती हैं. हम चाहते हैं क़ि गगन छू लें; पर हमारा भाग्य इसकी इजाजत नहीं देता.हम चाहकर भी अपने हर सपने को पूरा नहीं कर पाते .यदि मन की हर अभिलाषा पूरी हो जाया करती तो अभिलाषा भी साधारण हो जाती .हम चाहते है क़ि हमें कभी शोक ;दुःख ; भय का सामना न करना पड़े.हमारी इच्छाएं हमारे अनुसार पूरी होती जाएँ किन्तु ऐसा नहीं होता और हमारी आँख में आंसू छलक आते है. हम अपने भाग्य को कोसने लगते है.ठीक इसी समय निराशा हमे अपनी गिरफ्त में ले लेती है.इससे बाहर आने का केवल एक रास्ता है ---आत्मशक्ति पर विश्वास;------


राह कितनी भी कुटिल हो ;
हमें चलना है .
हार भी हो जाये तो भी
मुस्कुराना है;
ये जो जीवन मिला है
प्रभु की कृपा से;
इसे अब यूँ ही तो बिताना है.
रोक लेने है आंसू
दबा देना है दिल का दर्द;
हादसों के बीच से
इस तरह निकल आना है;
न मांगना कुछ
और न कुछ खोना है;
निराशा की चादर को
आशा -जल से भिगोना है;
रात कितनी भी बड़ी हो
'सवेरा तो होना है'.

                           शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

सोमवार, 19 नवंबर 2012

देह की सीमा से परे


देह की सीमा से परे
बन जाना चाहती हूँ
एक ख्याल
एक एहसास ,
जो होते हुए भी नज़र न आये
हाथों से छुआ न जाए
आगोश में लिया न जाए
फिर भी
रोम-रोम पुलकित कर जाए
हर क्षण
आत्मा को तुम्हारी
विभोर कर जाए

वक्त की सीमा से परे
बन जाना चाहती हूँ वो लम्हा
जो समय की रफ़्तार तोड़
ठहर जाए
एक - एक गोशा जिसका
जी भर जी लेने तक
जो  मुट्ठी से
फिसलने न पाए

तड़पना  चाहती हूँ
दिन - रात
सीने में
एक खलिश बन
समेट लेना चाहती हूँ
बेचैनियों का हुजूम
और फिर
सुकून की हसरत में
लम्हा लम्हा
बिखर जाना चाहती  हूँ

बूँद नहीं
उसका गीलापन  बन
दिल की सूखी ज़मीन  को
भीतर तक सरसाना
हवा की छुअन बन
मन के तारों को
झनझना
चाहती हूँ गीत की रागिनी  बन 
होंठों पे बिखर - बिखर जाना 

जिस्म 
और जिस्म से जुड़े 
हर बंधन को तोड़ 
अनंत तक ..........
असीम बन  जाना 
चाहती हूँ 
बस......
यही चाहत 

रविवार, 18 नवंबर 2012

जन्मदिन मुबारक इंदिरा जी.

Happy Birthday Indira Ji.

Photo: ‎Happy Birthday Indira Ji.
जन्मदिन मुबारक इंदिरा जी.
سالگرہ مبارک اندرا جی.
শুভ জন্মদিন ইন্দিরা Ji.
જન્મદિવસની હાર્દિક શુભેચ્છા ઈન્દિરા જી.
పుట్టినరోజు శుభాకాంక్షలు ఇందిరా జీ.
ಜನ್ಮದಿನದ ಶುಭಾಶಯಗಳು ಇಂದಿರಾ ಜಿ.
பிறந்த இந்திரா ஜி.

Today birth anniversary of former Prime Minister  Indira ji‎ जन्मदिन मुबारक इंदिरा जी.
سالگرہ مبارک اندرا جی.
শুভ জন্মদিন ইন্দিরা Ji.
જન્મદિવસની હાર્દિક શુભેચ્છા ઈન્દિરા જી.

 పుట్టినరోజు శుభాకాంక్షలు ఇందిరా జీ.
ಜನ್ಮದಿನದ ಶುಭಾಶಯಗಳು ಇಂದಿರಾ ಜಿ.
பிறந்த இந்திரா ஜி.
Photo: Nation Pays Tributes to Indira on 95th Birth Anniversary.

The nation today remembered former Prime Minister Indira Gandhi on her 95th birth anniversary with President Pranab Mukherjee and Vice President Hamid Ansari among prominent leaders who paid homage to the leader.

The leaders offered floral tributes at her memorial Shakti Sthal on the banks of Yamuna.

UPA Chairperson Sonia Gandhi, Union Ministers Sushil Kumar Shinde and Kamal Nath were among those who visited the memorial.

On the occasion, tricolour balloons were released by Mukherjee, Ansari and Sonia.

Patriotic music was also played along with a speech of Indira Gandhi.

Gandhi, who was born on November 19, 1917 in the politically influential Nehru family, was the first woman Prime Minister of India.

Today birth anniversary of former Prime Minister Indira ji
FROM- RAHUL GANDHI WITH A VISION FOR COMMON PEOPLE

शनिवार, 17 नवंबर 2012

'मुझे ऐसे न खामोश करें '

'मुझे ऐसे न खामोश करें '

आ ज मुंह खोलूंगी मुझे ऐसे न खामोश करें ,
मैं भी इन्सान हूँ मुझे ऐसे न खामोश करें !

तेरे हर जुल्म को रखा है छिपाकर दिल में ,
फट न जाये ये दिल कुछ तो आप होश करें !

मुझे बहलायें नहीं गजरे और कजरे से ,
रूमानी बातों से न यूँ मुझे मदहोश करें !

मेरी हर इल्तिजा आपको फ़िज़ूल लगी ,
है गुज़ारिश कि आज इनकी तरफ गोश करें !

मेरे वज़ूद  पर ऊँगली न उठाओ 'नूतन' ,
खून का कतरा -कतरा यूँ न मेरा नोश करें  !                            

शिखा कौशिक 'नूतन'

Asha

ख्यालो में  अनेक रंग सजते हैं  कई सपने बुने जाते हैं , पर सपने सच कहा होते हैं .? सब   रंग रंगोली में सजा कर रख दिए थे अपने दामन में  बस एक रंग था फीका सा , जिसका रंग रोज बदलता सा  . आशा नाम की थी पर जीवन मैं सिर्फ निराशा ही निराशा . 18 दीवाली बीत गयी इस आँगन में .
 कहा गया था कि  हमारे घर की लक्ष्मी  बनेगी  . पर वोह अपने मन के आँगन की लक्ष्मी भी नही बन पाई  . देखती थी के सब कैसे आँगन सजाती हैं घर के नए परदे लाती हैं ,कोन  सा नया बर्तन आएगा घर में ,
 भाई दूज पर क्या उपहार जायेगा ननद के घर ,  दीवाली से महिना भर पहले से घर के सब खिड़की- दरवाज़े  साफ करती आशा   बस यही सोचती रहती  कि  कौन सी दीवाली होगी जब वोह खुद जाकर लक्ष्मी पूजन का सामान लाएगी .  खुद आगे होकर लोगो के घर जाएगी 
,                                                                           सिल्क की सारी पहन कर ,एक कृत्रिम मुस्कान के साथ  उसको चाय के कप के साथ बैठक  में बुलाया जाता हैं . कुछ नाम बताये जाते हैं जिनको वोह बिना देखे नमकार कर देती हैं  और उसको मठरी बनाने का आदेश मिलते ही बैठक से बाहर  आना होता हैं . एक जमींदार घराने की बड़ी बहू , कम पड़ी-लिखी आशा को कभी ऐसे आशा न थी कि   शादी के बाद वोह एक बंधुआ बहू होगी  जिसका काम होगा घर को सम्हालना जैसा आदेश मिले उसके अनुसार काम होना चाहिए अगर आदेश से इतर जरा भी काम  हुआ तो आशा की निराशा  कब लातो घूसों  से बदहवास हो जाये कुछ नही पता , बड़ी हवेलियों  में चीखे बाहर  नही आती घुट जाती  हैं तकिये के अंदर या साड़ी  के पल्लू में  .
                                                                             हाँ हाँ!!! दो बच्चे भी हैं पति भी कोई बलात्कारी होते हैं भला ! हक होता हैं उनका  , उसके  दो बच्चे हैं जो होस्टल से आते हैं तो उनके लिय माँ एक कुक होती हैं बस!! जो उनका पेट भरे ,जेब पिता के दिए नोटों से इतनी भरी होती हैं के उनको रिश्ते नाते निभाने की समझ नही होती  हर रिश्ता उनके लिय एक अवसर होता हैं जिसको कब कैसे भुनाना हैं अच्छे से जानते हैं वोह बच्चे 
                                                                             
 एल्बम के पुराने पन्नो को सहेजती  आशा फिर से खो जाती हैं  और रह जाता हैं  सिल्क की साड़ी  को तह लगाने का काम .........और आशा फूहड़ औरत हो जाती हैं .. . जिसे कुछ नही करना आता सिवा एक नौकरानी के काम  करने के अलावा . आज आशा  घर भर में नही हैं हैं सब तरफ ढूढ़ मची हैं    आज खाना जो नही बना , पर किसी ने  घर के पीछे वाली सड़क  के बाजु में गुजरती पटरी पर  नही ढूँढा 
एक नाजुक सी सपनीली आँखों वाली लड़की  नाम से आशा सिर्फ निराशा से जी रही थी  जिन्दगी ............. क्या आपने आस-पास देखा हैं उसको कही ?देखिये न अपने मन का कोना 

सोमवार, 12 नवंबर 2012

Vasiyat

मेरी जागीर हैं मेरे बच्चे 
जिनको मैंने इन हाथो से पाला हैं 
तन की वसीयत खुदा के नाम की 
धन की वसीयत मेरे हाथ मैं नही 
मन के सारे कोने झाड़ -पौंछ कर 
मैंने एक पोटली भर ली
मेरे बच्चो इस दीवाली
मैंने भी अपनी वसीयत लिख ली
मेरी हर फटकार को तुम
जींवन का सबक समझोगे
मेरी हर ना ने तुमको
जीवन मूल्य बताये होंगे
मेरे हर दुलार ने तुमको
प्यार सीखाया होगा
मेरी सख्ती ने तुमको
कमजोर होने से बचाया होगा
जिन्दगी का क्या भरोसा
आज हैं कल हो न हो
या बरसो तक हो
छोटे छोटे पल को जीना
खुशियों मैं भी खुशिया जीना
इस वसीयत का मूल मंत्र हो ............................. नीलिमा

रविवार, 11 नवंबर 2012

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !


दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
दीपों का उत्सव आया है,
दीपों का उत्सव आया है .

तम का अभिमान घटाने को ;
दुष्टों का दंभ मिटाने  को ;
आशा कलिया चटकाने  को ;
खुशियों  के  दर खटकाने  को ;
दीपों का उत्सव आया है,
दीपों का उत्सव आया है .

सोया विश्वास जगाने को ;
मायूसी दूर भगाने को ;
नयनों में स्वप्न सजाने को ;
नए तराने  गाने  को ;


दीपों का उत्सव आया है,
दीपों का उत्सव आया है .
                                   शिखा  कौशिक 
                            





होंठो से रिसता खून 
सूनी आँखे 
लहराती सी चाल 
बिखरे से बंधे बाल 

बनीता 
आँगन लीप रही हैं 


आज धनतेरस हैं
किसनू लोहे की
करछी खरीद लाया हैं
शगुन के लिए


आते ही उसे
घर की लक्ष्मी पर
अजमाया हैं

बनिता की माँ ने
पहली दीवाली का
शगुन
नही भिजवाया हैं . Neelima Sharma

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

संस्कार किताबो के मोहताज नही होते

रमती  परेशान थी 
 इकलोती पाचवी पास 
औरत  थी मोहल्ले की 
 और पति उज्जड गवार 
 रात शराब के नशे मैं 
 उसने बक्की  थी उसको
माँ- बहन की गालियाँ
    . मर क्यों न गयी रमती
 शरम से 
.
.
 रमती आज मुस्करा रही हैं 
 सामने पीली कोठी वाली  
बाल कटी   मेमसाहेब
 कल रात सड़क पर 
 पति के हाथो पीटी हैं 
 माँ- बहन की गालियों  के साथ  
.
  संस्कार किताबो के मोहताज नही होते 
 रमती हँस  रही हैं किताबो पर 
 अपने पर   
 पीली कोठी  की अभिजत्यता पर 

 खुद पर हँस ना बनता हैं उसका ...............  नीलिमा